श्री भक्तामर पूजा
नरेन्द्र छन्द ( राग - इह विधि राज करे नर नायक...)
हे परमेश्वर हे सर्वेश्वर हे तीर्थंकर क्षेमंकर।
आदि जिनेश्वर हे प्रभु भगवन् नाश करो भव का अंकुर।
आह्वानन स्थापन करता हृदयकमल पर तुम आओ,
परम पूज्य परमेश्वर आकर सारे पाप नशा जाओ।।
दोहा
हृदय विराजो नाथ तुम, करो जगत उद्धार।
चरण कमल को पूजता, मम भक्ति करो सुखकार।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्र मम हृदये अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्र मम हृदय तिष्ट तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्र मम हृदय समीपे
सन्निहितो भव भव वषअ् सन्निधिकरण।
सूर्योदय ( राग-जिसने राग द्वेष कामादिक....)
नदी प्रयागी प्रासुक जल को मैंने कुम्भ भराया है,
तीन रोग के नाशन हेतु धारा तीन कराया है।
भक्तामर के आदि जिनेश्वर तुमको शीश नमाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय जन्म-जरा मृत्यु रोग विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
यह संसार महादुःख दावानल से मैं प्रभु घबराया हूँ,
भव संसार नशाओ मेरा चरणन गन्ध चढ़ाया हूँ।
भक्तमर के आदि जिनेश्वर तुमको शीश नमाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय भवाताप विनाशनाय गन्धं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षय पद के पाने कारण अक्षत पंुज बनाया हूँ,
अक्षय पद मुझको मिल जावे चरण शरण में आया हूँ।।
भक्तामर के आदि जिनेश्वर तुमको शीश नमाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय अखण्ड पद प्राप्ताय अक्षतं निर्वमामीति स्वाहा।
चरणकमल में स्वर्ण कमल प्रभु सुरगणनाथ बिछाते हैं,
फिर भी चरण आप नहीं रखते ऐसा गणधर गाते हैं,
भक्तामर अधिनायक जिनवर ऋषभनाथ गुण गाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय कामारि जय पद प्राप्ताय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
तन की भूख नहीं मिटती मन करता भोजन खाने को,
इसीलिए नैवेद्य चढ़ाता सारा रोग नशाने को।
भक्तामर अधिनायक जिनवर ऋषभनाथ गुण गाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय क्षुधा रोग निर्वपामीति स्वाहा।
अंधा होकर भटक रहा हूँ मोह जाल के घेरे में,
अन्धकार ही रहा हमेशा ज्ञान जगाओ मेरे में।
भक्तामर अधिनायक जिनवर ऋषभनाथ गुण गाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय महामोह अन्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ध्यान अग्नि से कर्म काष्ट को तुमने नाथ जलाया है,
तुमसा पद प्रभु मैं भी पाऊँ चरणन धूप जलाया है।
भक्तामर अधिनायक जिनवर ऋषभनाथ गुण गाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्रायाय अष्ट कर्म दहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
राजभोग के सब फल त्यागे शिव फल को तुम पाया है,
वो ही फल हमको मिल जावे फल समूह चढ़वाया है।
भक्तामर अधिनायक जिनवर ऋषभनाथ गुण गाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्रायाय महामोक्ष फल प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
आवागमन मिटाने जिनवर तुम गुण को मैं गाया हूँ,
अष्ट द्रव्य एकत्रित करके तुमको आज चढ़ाया हूँ।
भक्तामर अधिनायक जिनवर ऋषभनाथ गुण गाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर सम्पन्न ! श्री आदिनाथ जिनेन्द्रायाय अनर्घ पद प्राप्ताय फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
गोमुख यक्ष
(राग-नरेन्द्र छंद...)
सोने जैसी कान्ति वाला देह आपका प्यारा,
बैल सवारी बनी आपकी चारभुजा सुखकारा।
जिल शासन के रक्षक तुम हो गोमुख यक्ष सुप्यारे,
जिनवर का श्रद्धान है तुमको जिन शासन रखवारे।।
भक्तामर अधिनायक जिनवर ऋषभनाथ गुण गाऊँ मैं,
चरणकमल की सेवा करके शाश्वत सत्ता पाऊँ मैं।।
ॐ आं क्रों ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय शासन रक्षक गोमुख यक्षाय इदम् अर्घ्य
पाद्यं जल गंध अक्ष्ज्ञत पुष्प चरु दीपं धूपं फलं अर्घ्यं समर्पयामि।
चक्रेश्वरी यक्षी
चौपाई
‘चक्रेश्वरी‘ है नाम तुम्हारा, निज वैभव का है भण्डारा।
देवी तुमको अर्घ दिलता, हर्षित मन से तुम्हें बुलाता।।
ॐ आं क्रों ह्रीं श्री आदिनाथ तीर्थकरस्य शासन रक्षक चक्रेश्वरी देवी इदम्
अर्घ्य पाद्यं जलं गंधं अक्षतं पुष्पं चरु दीपं धूपं फलं अर्घ्यं समर्पयामि।
दोहा
नदी प्रयागी नीरले, त्रिवेणी का नीर।
धारा चरणन मैं करूँ, पाऊ भव दधि तीर।।
शान्तये शान्तिधारा....
मुनि मन जैसा सुमन ले, कोमल अति सुखदाय।
पुष्पांजलि चरणन धरूँ, मेटो काम बलाय।।
दिव्य पुष्पांजलि क्षिपित्ण्ण्ण्ण्ण्
जाप्य:’ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अर्हं वृषभनाथ तीर्थकराय नमः।
गुणमाला
दोहा
नन्त वीर्य और बाहुबली, भरत लाल के तात।
नाभिराय के लाल की, गुणमाला मैं गात।।
चौपाई
आदी ब्रह्मा नमत जिनेशा, तुमको नमते सतत सुरेशा।
प्रजापति है नाम तुम्हारा, पुरुदेव भी तुम्हें पुकारा।।1।।
जनम नाम है ऋषभ तुम्हारा, वृषभनाथ भी अति सुखकारा।
हंसनाथ गुरु तुम्हें बताया, तीन लोक ने शीश झुकाया।।2।।
षट् कर्मों के तुम उपदेष्टा, सभी सिखाई सारी चेष्टा।
प्रथम तीर्थंकर तुम सुखकारी, जय हो जय जिन नाथ तुम्हारी।।3।।
प्रथम देशना तुमसे पाई, जो थी सबको अति सुखदाई।
वीतराग अरिहन्त कहाये, तुम सर्वज्ञ उपदेशी गाये।।4।।
जो भी तुमको मन से ध्यावे, उसके पाप कर्म नश्ख जावे।
मानतुङ्ग ने तुमको ध्याया, उनका तुमने दुःख मिटाया।।5।।
भक्तामर रचना जब कीनी, तुम चरणों में दृष्टी दीनि।
अड़तालीस ताले जब नाशे, तुम भक्ति उन हृदय प्रकाशे।।6।।
राजा भोज हुआ तुम चेरा, उसने किया चरण में डेरा।
तुम भक्ति भव पार लगावे, जो भी ध्यावे सुख उपजावे।।7।।
तेरा नाम जगत में सच्चा, तिर जावें बूढ़ा या बच्चा।
‘योगी‘ तुम पद ध्यान लगावें, आशीष दो जग में नहीं आवे।।8।।
दोहा
आदीनाथ मुनिनाथ को, नित्य नमाऊँ भाल।
‘योगी‘ चरणों में नमें, पाने सौख्य विशाल।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महाबीजाक्षर संपन्न श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय पूजा जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
भक्तामर अधिपति तुम्हें, जो पूजे सिर नाय।
‘योगी‘ कहता है सुनो, सो निश्चय शिवपाय।।
इत्यादि आशीर्वाद