*अपने कर्म से मिलता हैं*
**एक बार एक राजा था, वह जब भी मंदिर जाता, तो 2 भिखारी उसके दाएं और बाएं बैठा करते*....
*दाईं तरफ़ वाला कहता*:
*"हे भगवान जो जीव जैसे कर्म करता है वह वैसा ही फल पाता है किसी सद् कार्यों से ही जीव राजा एवं बुरे कार्यों से रंक बनता है, तूने राजा को बहुत कुछ दिया है, मुझे भी ऐसी सामर्थ प्रकट हो के सदैव बांटू किसी से मांगना ना पड़े*.!"
*बाईं तरफ़ वाला कहता*:
*"ऐ राजा.! ईश्वर ने तुझे बहुत कुछ दिया है, मुझे भी कुछ दे दे*.!"
*दाईं तरफ़ वाला भिखारी बाईं तरफ़ वाले से कहता*:
*सद कार्यों के तूफान खड़े करो जो किसी से मांगने नहीं बांटने की बुद्धि रखते हैं उनके जीवन में ही अनुकूलताऐ है बनती हैं किसी से माँगने से नहीं*..
*बाईं तरफ़ वाला जवाब देता: "चुप कर मुर्ख*.."
*एक बार राजा ने अपने मंत्री को बुलाया और कहा कि मंदिर में दाईं तरफ जो भिखारी बैठता है वह हमेशा ईश्वर गुण गाता है उसे उसके भाग्य से जो मिलना होगा वह मिलेगा ही*..
*लेकिन जो बाईं तरफ बैठता है वह हमेशा मुझसे फ़रियाद करता रहता है, तो तुम ऐसा करो कि एक बड़े से बर्तन में खीर भर के उसमें स्वर्ण मुद्रा डाल दो और वह उसको दे आओ*.!
*मंत्री ने ऐसा ही किया.. अब वह भिखारी मज़े से खीर खाते-खाते दूसरे भिखारी को चिड़ाता हुआ बोला: "हुह... बड़ा आया ईश्वर के बताए मार्ग पर चलो..', यह देख राजा से माँगा, मिल गया ना*."
*खाते खाते जब इसका पेट भर गया तो इसने बची हुई खीर का बर्तन उस दूसरे भिखारी को दे दिया और कहा: "ले पकड़... तू भी खाले, मुर्ख*.."
*अगले दिन जब राजा आया तो देखा कि बाईं तरफ वाला भिखारी तो आज भी वैसे ही बैठा है लेकिन दाईं तरफ वाला ग़ायब है*..
*राजा नें चौंक कर उससे पूछा: "क्या तुझे खीर से भरा बर्तन नहीं मिला*.."
*भिखारी: "जी मिला था राजा जी, क्या स्वादिस्ट खीर थी, मैंने ख़ूब पेट भर कर खायी*.!"
*राजा: "फिर*..?!!?"
*भिखारी: "फ़िर जब मेरा पेट भर गया तो वह जो दूसरा भिखारी यहाँ बैठता है मैंने उसको दे दी, मुर्ख हमेशा कहता रहता है: ' ईश्वर के बताए मार्ग पर चलो.!' ले खा ले*!
*राजा मुस्कुरा कर बोला: "अवश्य ही, ईश्वर के बताए मार्ग पर चलकर ही आज वह सुखी हुआ है*.!"
*अपने पर भरोसा रखें*.....
*कर्म करो तो फल मिलता है*,
*आज नहीं तो कल मिलता है*
*✍🏻.....भगवान किसी को कुछ देते लेते नहीं है जीव अपने परिणामों का ही फल पाता है सदेव सहयोग की भावना रखें एवं सबका सहयोग करें और वीतरागी भगवंतो के बताऐ वस्तु स्वरूप का निर्णय कर शीघ्र भव का अभाव कर पूर्ण सुखी हों।*
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