श्री अनन्तनाथ भगवान


अनन्तनाथ भगवान का परिचय




पिछले

भगवान विमलनाथ

अगले

भगवान धर्मनाथ

चिन्ह

सेही

पिता

सिंहसेन महाराज

माता

महारानी जयश्यामा

वंश

इक्ष्वाकु

वर्ण

क्षत्रिय

अवगाहना

50 धनुष (200 हाथ )

देहवर्ण

स्वर्ण सदृश

आयु

3,000,000 वर्ष

वृक्ष

सहेतुक वन

पंचकल्याणक तिथियां


गर्भ

कार्तिक कृष्णा एकम

अयोध्या

जन्म

ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी

अयोध्या

दीक्षा

ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी

अयोध्या

केवलज्ञान

चैत्र कृष्ण अमावस्या

अयोध्या

मोक्ष

चैत्र कृष्ण अमावस्या

सम्मेद शिखर

समवशरण


गणधर

श्री जय आदि ५०

मुनि

छयासठ हजार

गणिनी

आर्यिका सर्वश्री

आर्यिका

एक लाख आठ हजार

श्रावक

दो लाख

श्राविका

चार लाख

यक्ष

किन्नर देव

यक्षी

अनंतमती देवी

 

अनन्तनाथ भगवान का परिचय

परिचय

धातकीखंडद्वीप के पूर्व मेरू से उत्तर की ओर अरिष्टपुर नगर में पद्मरथ राजा राज्य करता था। किसी दिन उसने स्वयंप्रभ जिनेन्द्र के समीप जाकर वंदना-भक्ति आदि करके धर्मोपदेश सुना और विरक्त हो दीक्षा ले ली। ग्यारह अंगरूपी सागर का पारगामी होकर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। अन्त में सल्लेखना से मरण कर अच्युत स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में इन्द्रपद प्राप्त किया।

गर्भ और जन्म

इस जम्बूद्वीप के दक्षिण भारत की अयोध्या नगरी में इक्ष्वाकुवंशी सिंहसेन महाराज राज्य करते थे, उनकी महारानी का नाम जयश्यामा था। कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा के दिन वह अच्युतेन्द्र रानी के गर्भ में अवतीर्ण हुआ। नव माह के बाद ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी के दिन पुत्र उत्पन्न हुआ। इन्द्र ने पुत्र का नाम ‘अनन्तनाथ’ रखा।

तप

भगवान को राज्य करते हुए पन्द्रह लाख वर्ष बीत गये, तब एक दिन उल्कापात देखकर भगवान विरक्त हो गये। भगवान देवों द्वारा निर्मित पालकी पर सवार होकर सहेतुक वन में गये तथा ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी के दिन एक हजार राजाओं के साथ दीक्षित हो गये।

केवलज्ञान और मोक्ष

छद्मस्थावस्था के दो वर्ष बीत जाने पर चैत्र कृष्ण अमावस्या के दिन केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। अन्त में सम्मेदशिखर पर जाकर एक माह का योग निरोधकर छह हजार एक सौ मुनियों के साथ चैत्र कृष्ण अमावस्या के दिन परमपद को प्राप्त कर लिया।