चौषठ . ऋद्धि ;समुच्चय पूजाद्ध

गीता छन्द

संसार सकल असार जामें सरता कछु है नहीं

धनधाम धरणी और गृहणी त्यागी लीनी वन मही।

ऐसे दिगम्बर हो गये अरु होयंगे बरतत सदा।

इत थापि.पूजों मन वचन करि देहु मंगल विधि तदा।।1।।

ऊँ ह्री भूतभविष्यद्वर्वमानकालसंबधि पंचप्रकारसर्वऋषिश्वराः 

अत्रावतरावतर संवौषट्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। 

अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। 

चाल.रेखता

लाय शुभ गंगजल भरिकै कनक भृंगार धरि करिकै।

जन्म जरामृत्यु के हरननए यजो मुनिराजके चरणन।।1।।

ऊँ ह्री भूत भविष्य द्वर्वमान काल संबधि पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थ स्रातक पंच प्रकार सर्व मुनिश्वरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि। 

घसो कश्मिर संग चन्दन मिलावो केलिको नन्दन।

करत भवतापको हरननए यजों मुनिराजके चरणन।।

ऊँ ह्री भूत भविष्य द्वर्वमान काल संबधि पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थ स्रातक पंच प्रकार सर्व मुनिश्वरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय चंदनं नि। 


अक्षत शुभचन्द्रके करसेए भरो कणथालमें सरसे।

अक्षयपद प्राप्तिके करणन यजोंए मुनिराजके चरणन

ऊँ ह्री भूत भविष्य द्वर्वमान काल संबधि पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थ स्रातक पंच प्रकार सर्व मुनिश्वरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय अक्षतं।नि। 


पहुप ल्यो घ्राणके रंजनए उडत ता मांहि मकरंदन।

मनोभव बाणके हरनन यजों मुनिराजके चरणन।।।4।।

ऊँ ह्री भूत भविष्य द्वर्वमान काल संबधि पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थ स्रातक पंच प्रकार सर्व मुनिश्वरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय पुष्पं नि। 


लेय पकवान बहु विधिकेए भरो शुभथाल सुवरणके।

असातावेदनी क्षुरणनए यजों मुनिराजके चरणन।।।।।5।।

ऊँ ह्री भूत भविष्य द्वर्वमान काल संबधि पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थ स्रातक पंच प्रकार सर्व मुनिश्वरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय नैवेद्यं नि। 


जगमगे दीप लेकरिके रकाबी स्वर्णमें धरिके।

कोहविध्वंशृके करंणन यजों मुनिराज चरणन।।।।6।।

ऊँ ह्री भूत भविष्य द्वर्वमान काल संबधि पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थ स्रातक पंच प्रकार सर्व मुनिश्वरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय दीपं नि। 


अगर मलयागिरि चन्दन खेयकरि धूपके गन्धन।

होय कर्माष्टको जरणन यजों मुनिराजके चरणन।।।।7।।

ऊँ ह्री भूत भविष्य द्वर्वमान काल संबधि पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थ स्रातक पंच प्रकार सर्व मुनिश्वरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय धूपं नि। 


सिरीफल आदि फल ल्यायोए स्वर्णको थाल भरवायो।

होयशुभ मुक्तिको मिलननए यजों मुनिराजके चरणन।।।।8।।

ऊँ ह्री भूत भविष्य द्वर्वमान काल संबधि पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थ स्रातक पंच प्रकार सर्व मुनिश्वरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय फलं नि। 


जलादिक द्रव्य मिलवायेए विविध वादित्र बजवाये।

अधिक उत्साह करि तनमेंए चढ़ावो अर्घ्ज्ञ चरणनमें।।।।9।।

ऊँ ह्री भूत भविष्य द्वर्वमान काल संबधि पुलाक बकुश कुशील निर्ग्रन्थ स्रातक पंच प्रकार सर्व मुनिश्वरेभ्यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय अर्घं नि। 


सोरठा.

 तारण तरण जिहाजए भव समुद्रके मांहि जो।

ऐसी श्री ऋषिराजए सुमरि सुमरि विनती करो।।10।।

पद्धरी छन्द।

जय जय जय श्रीमुनियुगल पायए मैं प्रणमो मनवच शीशनाय।

ये सब असार संसार जानि सब त्याग कियो आतमकल्याण।।

क्षेत्र वास्तु अरु रत्न स्वर्णए धन धान्य द्विपद अरु चतुकचर्ण।

करु कोप्यो भांड दश बाह्य भेद परिग्रह त्यागे नहीं रंचखेद।।

मित्यात तज्या संसार मूलए मुनि हास्य अरति रति शोकशूल।

भय सप्त जुगुप्सा स्त्रीय वेद पुनि पुरुष वेद अरु क्लीव वेद।।

अरु क्रोध मान माया रु लोभए ये अंतरङ्गमें करत क्षोभ।

इमि ग्रन्थ सबै चौबीस येहए तजि भये दिगम्बर नग्न जेह।।

गुणमूल धारि तजि रागदोषए तप द्वादश धरि तन करत शोष।

तृण कंचन महल मसान मित्त अरु शत्रनिमें समभाव चित्त।।

अरु मणि पाषाण समान जासए पर.परणतिमें नहिं रंच वास।

यह जीव देह लखि भिन्न भिन्नए जे नि स्वरूपमें भाविकिन्न।।

ग्रीष्मऋतु पर्वतशिखर वास वर्षामें तरुतल है निवास।

जे शीतकालमें करत ध्यानए तटनीतट चोहठ शुद्ध थान।।

हो करुणासागर गुण अगार मुझ देहि अखय सुखको भंडार।

मैं शरण गही मुझ तार तारए मो निज स्वरुप द्यो बार बार।।

।।घत्ता।।

यह मुनि गुणमालाए परम रसाला जो भविजन कंठे धरहि।

सबविघ्नविनासहिए मंगल भासहिए मक्तिरमा वह नर वरही।।

ऊँ ह्री भूतभविष्यद्वर्वमानकालसंबधि पंचप्रकारऋषिश्वरायार्घं।

दोहा. 

सर्व मुनिनकी पूजा यह कर भव्य चित्त लाय।

वृद्धि सर्व घरमें बसैए विघ्न सबै नशि जाय।।11।।