सलूना पर्वपूजा
श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत मुनि पूजा
अडिल्ल छन्द
श्री अकम्पन मुनि आदि सब सात सै।
कर विहार हथिनापुर आये सात सै।।
तहां भयो उपसर्ग बड़ो दुखकार जू।
शान्त भाव से सहन कियो मुनिराज जू।।
मिती जु पन्द्रस श्राण शुक्ल प्रमानिये।
ध्यानारूढ़ सुतिष्ठ सर्व ुनि मानिये।।
हुओ उपसर्ग जु दूर धन्य घड़ी आज जी।
तिन प्रति शीश नवाय पूजो मुनिराजजी।।
तिनकी पूजा रचूं भाव अरु भक्ति से।
दिवस सलूना भयो इसी यह युक्ति से।।
आह्नानन स्थापन सन्निधिकरणम जी।
तिष्ठ गुरु इत आय करूँ पद सेव जी।।
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादिसप्तशतमुनिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्नाननम्।
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादिसप्तशतमुनिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादिसप्तशतमुनिसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक (चाल जोगीरासा)
शीतल प्रासुक उज्जवल जल की कंचन झारी लाऊँ।
जन्म जरा मृतु नाश करन को, तुमरे चरण चढ़ाऊँ।।
श्री अकम्पन गुरु आदि दे मुनी सात सौ जानो।
तिनकी पूज रचूं सुखकारी भव भव के अघ हानों।।
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत महामुनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायं जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन केशर मिश्रित करके नीको चन्दन लाऊँ।
भव आताप जु दूर करन को गुरु के चरण चढ़ाऊँ।। श्री अकम्पन.
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत महामुनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायं चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्द्रकिरण सम उज्ज्वल अक्षत भाव भक्ति से लीने।
पुंज मनोहर श्रीगुरु सन्मुख सरधाकर जु करीने।। श्री अकम्पन.
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत महामुनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायं अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
बेल चमेली श्रीगुलाब के ताजे पुष्प सु लाऊँ।
कामबाण के नाश के कारण को श्री गुरु चरण चढ़ाऊँ।। श्री अकम्पन.
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत महामुनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायं नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
गुझा फेनी मोदक लाडू ताजे तुरत बनाऊँ।
श्री गुरुवर के चरण चढ़ा कर हर्ष हर्ष गुण गाऊँ।। श्री अकम्पन.
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत महामुनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायं नैवे़द्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृत कपूर की उत्तम ज्योत सु स्वर्ण कटोरी धारूँ।
श्री मुनिवर की करूँ आरती मोह कर्म को जारूँ।। श्री अकम्पन.
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत महामुनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायं दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूप सुगन्ध सुवासित होकर धूपायन में खेऊँ।
अष्टकर्म के नाश करन को आनन्द मंगल देऊँ।। श्री अकम्पन.
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत महामुनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायं धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
लौंग इलायची श्रीफल पिस्ता अरु बादाम मंगाऊँ।
सेव सन्तरा खट्टा मीठा, श्री गुरु चरण चढ़ाऊँ।। श्री अकम्पन.
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत महामुनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायं फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल फल आठों द्रव्य मिलाकर भाव-भक्ति से लाया।
हे गुरु हमको भव से तारों तातैं चरण चढ़ाया।।
श्री अकम्पन गुरु आदि दे मुनी सात सौ जानो।
तिनकी पूज रचूं सुखकारी भव भव के अघ हानों।।
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादि सप्तशत महामुनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनायं अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला
(दोहा)
मुनि अकम्पन आदि सब, सप्तम सैकड़ा जान।
तिनकी यह जयमाला सुन, भाषा करूँ बखान।।
चैपाई
जीव दया पाले गुरु स्वामी, दे धर्मोपदेश बहु नामी।
छहों काय की रक्षा पालें, तप कर आठ कर्म को टालें।।
झूठ न रंच मात्र मुख बोले, जो मन होय वचन सो खोलें।
महासत्य व्रत के मुनि धारी, तिनके पायन धोक हमारी।।
तृण जल भी अदत्त नहीं लेवें, धन कंचन तृण सम समझें वे।
महा अचैर्य व्रत के गुरु धारी, तिनके पायन धोक हमारी।।
अठारह सहस शील के भेदा, निर्भय धारत हो सु अखेदा।
शील महाव्रत के मुनि धारी, तिनके पायन धोक हमारी।।
चैबीस भेद परिग्रह गाये, सर्व त्याग वनवास कराये।
परिग्रह त्याग महाव्रत धारी, तिनके पायन धोक हमारी।।
पद्धरि छन्द
सु भावत बारह भावत नित्त, विचारत धर्म सदा सु पवित्त।
जय ग्यारह अंग सु पढ़त पाठ, संसार भोग का त्याग ठाठ।।
पंचेन्द्रिय दमन करें महान, मन वचन काय कर शुद्ध ध्यान।
जय मुनिवर वन्दू शान्त चित्त, संसार देह भोगनि विरत्त।।
जय मौन धार मुनि तप करन्त, तब कर्म काठ सबही जरन्त।
जय आनन्दकन्द विधान रूप, जय ध्यावत गुरु आतम स्वरूप।।
संसार कष्ट काटौ मुनीन्द्र, तुम चरणन में सब देव इन्द्र।
जय मुनिवर वन्दूं कर्म काट, शिव नारि वरणका करत ठाट।।
मैं अल्मती अज्ञान बुद्धि, प्रभु क्षमा करो जो हो अशुद्धि।।
‘रघुवर’ सुत्त वन्दत शीश न्याय, श्री गुरु गुण गाये बनाय।।
घत्ता
मुनि सब गुण धारं, जग उपकारं, कर भवपारं सुखकारं।
कर कर्म जु नाशा, आतम शाशा, सुख परमाकाशा दातारं।।
ओं ह्रीं श्री अकम्पनाचार्यादिसप्तशतमहामुनिभ्यः महाघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
भक्ति भाव मन लाय कर, पूजे वाचे जोय।
बाबूलाल सु स्वर्ग पद, निश्चय ताको होय।।
।। इत्याशीर्वादः- शांतये त्रय शांतिधारा - परिपुष्पांजलि क्षिपेत्।।
क्षमावणी पर्व पर की जाने वाली पूजा