भगवान श्री अरहनाथ जिनपूजा


भगवान श्री अरहनाथ जिनपूजा

दोहा

तीर्थंकर अरनाथ! तुम, चक्ररत्न के ईश।

ध्यान चक्र से मृत्यु को, मारा त्रिभुवन ईश।।१।।

आह्वानन विधि से यहाँ, मैं पूजूँ धर प्रीत।

रोग शोक दु:ख नाशकर, लहूँ स्वात्म नवनीत।।२।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवोषट् आह्वाननं।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।

अष्टक-अडिल्ल छंद

सिंधुनदी को नीर, स्वर्णझारी भरूँ।

मिले भवोदधितीर, तीन धारा करूँ।।

श्री अरनाथ जिनेन्द्र, जजूँ मन लाय के।

समतारस पीयूष, चखूँ तुम पाय के।।१।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

केशर चंदन घिसा, कटोरी में भरा।

रागदाह हरने को, चर्चूं सुखकरा।।श्री अर.।।२।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

चंद्रकिरण सम उज्ज्वल, अक्षत ले लिये।

तुम आगे मैं पुंज, धरूँ सुख के लिए।।श्री अर.।।३।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

चंपा जुही गुलाब, पुष्प सुरभित लिये।

भव विजयी के चरणों, में अर्पण किये।।श्री अर.।।४।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

मालपुआ रसगुल्ला, बहु मिष्टान्न ले।

क्षुधारोग हर हेतु, चढ़ाऊँ नित भले।।श्री अर.।।५।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

घृत दीपक ले करूँ, आरती नाथ की।

मोहध्वांत हर लहूँ, भारती ज्ञान की।।श्री अर.।।६।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

अगर तगर वर धूप, अग्नि में खेवते।

कर्म दूर हो नाथ! चरण युग सेवते।।श्री अर.।।७।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

श्रीफल पूग बदाम, आम केला लिये।

शिवफल हेतू तुम, पद में अर्पण किये।।श्री अर.।।८।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

जल चंदन अक्षत, आदिक वसु द्रव्य ले।

अर्घ चढ़ाऊँ ‘‘ज्ञानमती’’ निधियाँ मिलें।।श्री अर.।।९।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अनर्घपदप्राप्तये अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।

सोरठा

अरजिन चरण सरोज, शांतीधारा मैं करूँ।

चउसंघ शांती हेत, शांतीधारा जगत में।।१०।।

शांतये शांतिधारा।

कमल केतकी पुष्प, सुरभित निजकर से चुने।

श्री जिनवर पदपद्म, पुष्पांजलि अर्पण करूँ।।११।।

दिव्य पुष्पांजलि:।

पंचकल्याणक अर्घ्य

सखी छंद

फाल्गुन कृष्णा तृतिया में, प्रभु गर्भ निवास किया तें।

सुरपति ने उत्सव कीना, हम पूजें भवदुखहीना।।१।।

ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णातृतीयायां श्रीअरनाथजिनगर्भकल्याणकाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

मगसिर शुक्ला चौदस के, प्रभुजन्म लिया सुर हर्षे।

मेरू पर न्हवन हुआ है, इन्द्रों ने नृत्य किया है।।२।।

ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लाचतुर्दश्यां श्रीअरनाथजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

मगसिर सुदी दशमी तिथि में, दीक्षा धारी प्रभु वन में।

इंद्रों से पूजा पाई, हम पूजें मन हरषाई।।३।।

ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्लादशम्यां श्रीअरनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

कार्तिक सुदि बारस तिथि में, केवल रवि प्रकटा निज में।

बारह गण को उपदेशा, हम पूजें भक्ति समेता।।४।।

ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्लाद्वादश्यां श्रीअरनाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यम् निर्वपमीति स्वाहा।

शुभ चैत्र अमावस्या में, मुक्तिश्री परणी प्रभु ने।

इन्द्रोें ने की प्रभु अर्चा, पूजन से निजसुख मिलता।।५।।

ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णामावस्यायां श्रीअरनाथजिनमोक्षकल्याणकाय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

पूर्णार्घ्य (दोहा)

अरहनाथ की वंदना, करे कर्मअरि नाश।

अर्घ्य चढ़ाकर पूजते, मिले सर्वगुण राशि।।६।।

ॐ ह्रीं श्रीअरहनाथपंचकल्याणकाय पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।

जाप्य-ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय नम:।

जयमाला

दोहा

हस्तिनागपुर में हुये, गर्भ जन्म तप ज्ञान।

सम्मेदाचल मोक्षथल, पूजूँ अर भगवान।।१।।


त्रिभंगी छंद

पितु नृपति सुदर्शन सोमवंशवर, प्रसू मित्रसेना सुत थे।

आयू चौरासी सहस वर्ष धनु, तीस तनू स्वर्णिम छवि थे।।

गुरु तीस गणाधिप मुनि पचास, हज्जार आर्यिका साठ सहस।

श्रावक इक लाख व साठ सहस, श्राविका लाख त्रय धर्मनिरत।।२।।


पंचचामर छंद

जयो जिनेश! आप तीर्थनाथ तीर्थरूप हो।

जयो जिनेश! आप मुक्तिनाथ मुक्तिरूप हो।।

जयो जिनेश! आप तीन लोक के अधीश हो।

जयो जिनेश! आप सर्व आश्रितों के मीत हो।।३।।

सभी सुरेन्द्र भक्ति से सदैव वंदना करें।

सभी नरेन्द्र आपकी सदैव अर्चना करें।।

सभी खगेन्द्र हर्ष से जिनेन्द्र कीर्ति गावते।

सभी मुनीन्द्र चित्त में तुम्हीं को एक ध्यावते।।४।।

अपूर्व तेज आप देख कोटि सूर्य लज्जते।

अपूर्व सौम्य मूर्ति देख कोटि चन्द्र लज्जते।।

अपूर्व शांति देख क्रूर जीव वैर छोड़ते।

सुमंद मंद हास्य देख शुद्ध चित्त होवते।।५।।

अनेक भव्य आपके पदाब्ज पूजते सदा।

अनेक जन्म पाप भी क्षणेक में नशें तदा।।

अनेक जीव भक्ति बिन अनंत जन्म धारते।

अनेक जीव भक्ति से अनंत सौख्य पावते।।६।।

अनंत ज्ञानरूप हो अनंत ज्ञानकार हो।

अनंत दर्शरूप हो अनंत दर्शकार हो।।

अनंत सौख्यरूप हो अनंत सौख्यकार हो।

अनंत वीर्यरूप हो अनंत शक्तिकार हो।।७।।

दोहा

कामदेव चक्रीश प्रभु, अठारवें तीर्थेश।

‘‘ज्ञानमती’’ कैवल्य हित, नमूँ नमूँ परमेश।।८।।

ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।

शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।

सोरठा

मीन चिन्ह से नाथ! अरतीर्थंकर जगप्रथित।

जो पूजें नत माथ, पावें अविचल कीर्ति को।।१।।