सिद्ध पूजा भाषा (यंत्र स्थापनं)

अष्ट करम करि नष्ट अष्ट गुण पाय के,

अष्टम वसुधारा माहिं विराजे जाय के।

ऐसे सिद्ध अनन्त महन्त मनाय के,

संवौषट् आह्वान करूं हरषाय के।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! अत्र अवतरावतर संवौषट्।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः।

 ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। 

अथाष्टकं (सोरठा)

अहिमवनगत गंगा आदि अभंगा, तीर्थ उतंगा सरवंगा।

आनिय सुरसंगा सलिल सुरंगा, करि मन चंगा भरि भृंगा।।

त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी।

शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध यजामी शिरनामी।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! जन्मजरामृत्यु विनाशनायं जलं निर्वपामीति स्वाहा।

सूचना: इस संक्षिप्त मंत्र के स्थान पर निम्न वृहद् मंत्र भी पढ़ा जा सकता है।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, वीर्य, सूक्ष्मत्व, अवगाहन, अगुरुलघु, अव्याबाधाय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

हरिचन्दन लायो कपूर मिलायो, बहु महकायो मन भायो।

जल संग घिसायो रंग सुहायो, वरन चढ़ायो हरषार्यो।।

 त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी।

शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध यजामी शिरनामी।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! संसारताप विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।

तंदुल उजियारे शशि दुतिटारे, कोमल प्यारे अनियारे।

तुषखंड निकारे जलसु पखारे, पुंज तुम्हारे ढिग धारे।।

त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी।

शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध यजामी शिरनामी।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।

सुरतुरु की बारी, प्रीतिविहारी, किरिया प्यारी गुलजारी।

भरि कंचनथारी माल संवारी, तुम पद धारी अतिसारी।।

 त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी।

शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध यजामी शिरनामी।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! कामबाण विध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

पकवान निवाजे, स्वाद विराजे, अमृत ताजे क्षुध भाजे।

बहु मोदक छाजे, घेवर खाजे, पूजन काजे करि ताजे।। 

त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी।

शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध यजामी शिरनामी।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! क्षुधारोग विनाशनायं नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

आपा पर भासै ज्ञान प्रकाशै, चित्त विकासै तम नासै।

ऐसे विध खासे दीप उजासे धरि तुम पासे उल्लासे।। 

त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी।

शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध यजामी शिरनामी।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

चुंबत अलिमाला गंधविशाला, चंदनकाला गरुवाला।

तस चूर्ण रसाला करि ततकाल, अगनि ज्वाला में डाला।। 

त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी।

शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध यजामी शिरनामी।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! अष्टकर्म विध्वसंनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

श्रीफल अतिभारी, पिस्ता प्यारा, दाख छुहारा सहकारा।

रितु रितु का न्यारा सत्फल सारा, अपरंपारा ले धारा।। 

त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी।

शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध यजामी शिरनामी।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

जल फल वसुवृन्दा अरघ अमन्दा, जजत अनन्दा के कन्दा।

मेटो भवफन्दा सब दुखदन्दा, ‘हीराचन्दा’ तुम वन्दा।। 

त्रिभुवन के स्वामी त्रिभुवन नामी, अंतरयामी अभिरामी।

शिवपुरविश्रामी निजनिधि पामी, सिद्ध यजामी शिरनामी।।

ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्ध परमेष्ठिन्! अनध्र्यपदप्राप्तयेऽध्र्य निर्वपामीति स्वाहा।

जयमाला

ध्यान दहन विधिदारु दहि, पायो पद निरवान।

पंचभाव-तजुत थिर थये, नमौं सिद्ध भगवान।।

त्रोटक छन्द

सुख सम्यक् दर्शन ज्ञानलहा, अगुरु-लघु सूक्षम-वीर्य महा।

अवगाह अबाध अधायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

असुरेन्द्र सुरेन्द्र नरेन्द्र जजैं, भुवनेन्द्र खगेन्द्र गणेन्द्र भजैं।

जर जामन-मर्ण मिटायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

अमलं अचलं अकलं अकुलं, अछलं असलं अरलं अतुलं।

अरलं सरलं शिवनायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

अजरं अमरं अधरं सुधरं, अडरं अहरं अमरं अधरं।

अपरं असरं सब लायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

वृषवृन्दा अमन्द न निन्द लहैं, निरदन्द अफन्द सुछन्द रहैं।

नित आनन्दवृन्द बधायक हैं, सब सिद्ध नमेां सुखदारयक हैं।।

भगवन्त सुसन्त अनन्त गुणी, जयवन्त महन्त नमन्त मुनी।

जगजन्तु तणे अघघायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

अकलंक अटंक शुभंकर हैं, निरडंक निशंक शिवंकर हैं।

अभायंकर शंकर क्षायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

अतरंग अरंग असंग सदा, भवभंग अभंग उतंग सदा।

सरवंग अनंग नसायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

ब्रह्मंड जु मंडलमंडन हैं, तिहुं दण्ड प्रचण्ड विहण्डन हैं।

चिदपिण्ड अखण्ड अकायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

निरभोग सुभोग वियोग हरे, निरजोग अरोग अशोग धरे।

भ्रमभंजन तीक्षण सायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

जय लक्ष अलक्ष सुलक्षक हैं, जय दक्षक पक्षक रक्षक हैं।

पण अक्ष प्रतक्ष खपायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

अप्रमाद अनाद सुस्वाद-रता, उनमाद विवाद विषाद-हतसम

समता रमता अकषायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

निरभेद अखेद अछेद सही, निरवेद अवेदन वेद नहीं।

सब लोक अलोक के ज्ञायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

अमलीन अदीन अरीन हने, निजलीन अधीन अछीन बने।

जमको घनघात बचायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

न अहार निहार विहार कबै, अविकार अपार उदार सबै।

जग जीवन के मन भायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

असमंध अधंद अरंध भये, निरबंध अखंद अगंध ठये।

अमनं अतनं निरवायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

निरवर्ण अकर्ण उधर्ण बली, दुख हर्ण अशर्ण सुशर्ण भली।

बलि मोह की फौज भगायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

अविरुद्ध चिद्रूप स्वरूप द्य़ुती, जसकूप अनूपम भूप भुती।।

कृतकृत्य जगत्त्रय नायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

सब इष्ट अभीष्ट विशिष्ट हितू, उत्कृष्ट वरिष्ट गरिष्ट मितू।

शिव तिष्ठत सर्व सहायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

जय श्रीधर श्रीकर श्रीवर हैं, जय श्रीकर श्रीभर श्रीझर हैं।

जय रिद्धि सुसिद्धि-बढ़ायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं।।

सिद्ध सुगुण को कहि सकै, ज्यों विलसत नभमान।

‘हीराचन्द’ तातैं जजै, करहु सकल कल्याण।।

ओंम ह्रीं श्री अनाहतपराक्रमाय सकलकर्मविनिर्मुक्ताय सिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने पूर्णाध्र्य निर्वपामीति स्वाहा।

अडिल्ल

सिद्ध जजैं तिनको नहिं आवै आपदा।

पुत्र पौत्र धन धान्य लहै सुख सम्पदा।।

इन्द्र चन्द्र धरणेन्द्र नरेन्द्र जु होयके।

जावैं मुकति मँझार करम सब खोयके।।

इति आशीर्वादः-शांतये त्रय शांतिधारा - परिपुष्पांजलिं क्षिपेत् 

।। इति।।