दूरा वनम्र-सुर-नाथ-किरीट-कोटि–
संलग्न-रत्न-किरण-च्छवि-धूस-रांघ्रिम् !
प्रस्वेद ताप मल मुक्त्ति मपि प्रकृष्टै,
-भक्त्या जलै-र्जिनपतिंबहुधा भि-षिंचे।।1॥
मंत्र:- (१)ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं झ्वीं इवीं क्ष्वी क्ष्वी द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते पवित्रतर जलेन जिनमभिषेक यामि स्वाहा।
मंत्र:- (२)ॐ ह्रीं श्री मंतं भगवंतं कृपाल सन्तं वृषभादि वर्धमानान्तं चतु र्विशंति तीर्थंकर परम देवं आद्यानां आद्ये जम्बूद्वीपे भरत क्षेत्रे आर्य खंडे................देशे नाम नगरे .................एतद्जिन........... चैत्यालये वीर निर्माण सं. ............मासानां मासोत्तम...... मासे........ ...पक्षे तिथौ........वासरे पौवॅाहिन्क - समये पशस्त-ग्रह लग्न-होरायां मुनि - आर्यिका - श्रावक-श्रविकाणाम सकल कर्म क्षयार्थं जलेनाभिषेकं करोमि स्वाहा। इति जलस्नपनम
अर्घ -संसार महा दुख सागर में ,
प्रभु गोते खाते आया हूँ।
अब कर्म मलो के धोने को ,
इस जल की धारा देता हूँ।।
उदक चन्दन तंदुल पुष्पकैश्चरु,
सुदीप सुधूप फलार्घकैः
धवल मंगल गान रवा कुले,
जिन गृहे जिन नाथ महं यजे।।
ॐ नमोऽर्हते भगवते श्री मते पवित्रतर जलेन जिनमभिषेक यामि स्वाहा।