(भट्टारकब्रह्मकृष्णकृत)
जय माला दुग्धाभिषेक के समय बोली जाती है।
अमर नयरि सम नयरि अयोध्या
नाभि नरेन्द्र बसे निज बुध्या।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
तस धरराणी मरुदेवी माया
युगपति आदि जिनेश्वर जाया
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
ज्येष्ठ मास अभिषेक जु करिया
अष्टोत्तर शत कुंभ जु भरिया।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
भक्त जलधारा संचरिया
ललित कलोल धरणि उतरिया।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
जय जय सुर निकरी उच्चरिया
इंद्र इंद्राणी सिंहासन धरिया।।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
अंग अनंग विभूषण धरिया
कुंडल हार हरित मणि जड़िया।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
ऋषभनाम शत मुख विस्तरिया
कमल नयन कमलापति कहिया।।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
युगला धर्म निवारण चरिया
सुर नर निकर गंधोदक महिया।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
रत्न कचोल कुमारि नीभरिया
जिन चरणाम्बुज पूजत हरिया।।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
हिम हिमांशु चंदन घन सरिया
भुरि सुगंध गंध पसरयिया।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
अक्षत अक्षत वास लहरिया रोहिणि
कांत किरण सम सरिया।।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
देख तरु चिकर अमर निकरिया,
पंच मुष्टि जिन आगे धरिया॥
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
सुन्दर पारिजात मोगरिया
कमल बकुल पाटल कुम दरिया।
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
चरु वर दीप लेय अप छरिया
जिनवर आगे उतारि उधरिया॥
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
अगर तगर धूप फल फलिया
फणसर साल मधुर रस भरिया॥
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
कुसुमांजलि सांजलि समुजलिया
पंडित राय अभ्रव चक लिया॥
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
. त्रिभुवन कीर्ति पद पंकज वरिया
रत्नभूषण सूरि महा पद कहिया॥
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
ब्रह्म कृष्ण जिन राजस्तविया
जय जय का करी मनहरिया॥
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
कुंभ कलश भरि जय जिनवरिया
शाश्वत धर्म सदा अनुसरिया॥
सुरपति मेरु शिखर ले चढ़िया
कनक कलश क्षीरोदधि भरिया॥
यावंति जिन चैत्यानि विद्यन्ते भुवन त्रये।
तावन्ति सततं भक्त्या त्रि:परित्य नमाम्यहम्॥