स्त्रियो का अंतर सौंदर्य*
स्त्रियो का अंतर सौंदर्य*
स्त्रियो का अंतर सौंदर्य*
अमूल डेयरी की दुकान पर एक ही स्थान पर
दूध घी,दही,छाछ,मक्खन
सब एक साथ एक स्थान पर ही मिल जाता है
एका एक मन में विचार आया कि
ये तो स्त्रियो के जीवन की विभिन्न अवस्थाएं हैं
देखते हैं
कैसी है
दूध
दूध ,याने विवाह पूर्व का जीवन
शुध्द
निर्मल
कुमारिका जीवन
शुभ्र
सुंदर जीवन
दूध
याने
मायका
दूध याने
माता पिता का माता पिता से रिश्ता
इस दूध में स्वार्थ रूपी
पानी की मिलावट नहीं हो सकती
इसलिए उसे
संपूर्ण जगत
सुंदर
निर्मल
दिखता है
दही
कन्यादान के बाद कुमारिका बेटी वधू और बाद में एक पूर्ण स्त्री बन जाती है
दूध ही दही में बदल जाता है
दही
याने
जमना
एक ही स्थान पर
जम जाना घट्ट हो जाना
विवाह के बाद
लड़की से स्त्री बनी हुई बेटी
अनेक वर्षों तक इसी दही कै जामन की भूमिका में ही रहती आयी है
पति कैसा भी मिले
कितनी ही मारपीट करें
कितना ही जुआ,शराब,का व्यसन करें
कितनी ही पर स्त्रियो से संबंध रखने
इतना होने के बाद भी वो उस ससुराल में दही की तरह जमी रहती है
क्यो
क्यौं कि पति परमेश्वर है
इसलिए
जी नहीं
क्यों कि
वो अपने विवाह संबंध को दही की तरह जम कर जमाये रखती है
छाछ
विवाह के समय जो स्त्रियां दही बन जाती है
वे विवाह के दूसरे दिन से ही ससुराल पहुंचने पर
छाछ बन जाती है
छाछ बनाना आसान नहीं
दही में पानी डाल कर मथनी से मथना पड़ता है
आगे पीछे
दाये बाये
चारों दिशाओं में
दूध
एक गुणी
परंतु
छाछ बहुगुणी
ताने मारने वाली सासू मां हो।। (वात प्रकृति)
भूनभूनाने, दनदनाने वाला पति हो(पित्त प्रकृति)
इन्हें संभालने का
सहन करने का आयुर्वेद का उत्तम उपाय है छाछ
छाछ
याने
बहू का ससुराल से रिश्ता नाता
ससुराल में स्त्री को छाछ की तरह बहुगुणी होना पड़ता है
समस्त विसंगतियों का एक ही उपाय है
स्त्री का छाछ बन जाना
जहां दूध में पानी मिलाने से वो बेस्वाद हो जाता है
वहीं छाछ में पानी मिलाने से उसकी गुणवत्ता बढ जाती है
मक्खन
कयी वर्षों तक ससुराल में मथनी की तरह फिरकने के बाद
छाछ बन कर सबकी पूर्ति कर दी
अब छाछ ने ही पूछना शुरू कर दिया
मेरा फलित क्या
मेरा भविष्य क्या
तब
मुलायम
रेशमी
कुछ हद तक पारदर्शी
सम्मोहक
मनभावन
आकर्षक
मक्खन
अपने आप
उभर कर सामने आ जाता हे
सबको प्रिय जो होता है
मक्खन याने पति से रिश्ता
छाछ
मथते मथते
बर्तन के चारों तरफ
इस रिश्ते के
सम्वेदनशील
कण कण
एकत्रित होने लगते हैं
जिन पर उसका ध्यान नहीं जाता है
मक्खन
फिर से दूध बनना चाहता है
ये पागलपन नहीं तो और क्या है
घी
मक्खन
ये स्त्री की अंतिम अवस्था नहीं है
मक्खन भी अपना रूप बदल कर घी बन जाता है
पति के रिश्ते, रिश्तेदारों के प्रति स्नेह बंधन बन कर
घर के लिए
नाती पोतियों के लिए
दादी नानी
बन कर
घी
बन जाती है
चावल पर
या हलुवे पर
घी डालना हो
इस प्रकार
घर के सभी कामों में
दादी नानी रूपी
घी बन कर
रहती है
पूजा घर के दीपक में
घी डालकर
पूरे घर के लिए
प्रार्थना
करते करते
एक दिन
ये घी भी
समाप्त हो जाता है
यही स्त्रियो महिलाओं को उच्चतम अवस्था है
इसीलिए
स्त्री है तभी श्री है
मैं तो हमेशा से ही कहता रहा हूं
स्त्री है तभी तक ईश्वर भी है
ऐसीा ये स्त्रियो के जीवन कीा संपूर्ण यात्रा है
न कभी रूकने वाली
सतत दौड़ भाग करने वाली
कभी न घबराने वाली
सदैव परिवार की चिंता करने वाली
जुझारू प्रवृत्ति की
इन स्त्रियो को
उनकी जीवन यात्रा को
कोटि-कोटि नमन