>माँ पद्मावती चालीसा<
नमो पद्मावती सुख करनी, नमो दुर्गावती दुःख हरणी
महिमा नमित अपार तुम्हारी, मैं तुम गुणमुख वरणत हारी
जय श्री पार्श्व दया निधान, द्वध्न अवस्था धारी अयान
गंगा तट आय सुखदीन, तहां तापस कुतप में लीन
काष्ट थुल में नाग दोए, तापस ने जला दीना सोय
भेद जान श्री पार्श्व देव, तापस को बता दीना जिनदेव
तापस चीर काष्ट तुरन्त, पायो नाग नागिन मरणत
प्रभु वचन सुन निर्मल भाए, नाग नागिन उत्तम गति पाय
मर कर दोनों स्वर्ग जाए, धरणेन्द्र पद्मावती लहाय
जब कानन में पार्श्व जिनन्द, धरयो योग आनन्द कन्द
तब ही धूम सुकेत अयान, कमठाचर भयो सुआन
नभ ते देखो जब जिन धीर, पूर्व बैर याद कियो गम्भीर
कमठ उपसर्ग भरी कीनो, तुम नाथ सहित सहाय दीनो
जिन माथ चढ़ाय श्री जिनेन्द्र फन की करि छाया फनिइन्द्र
जिन पार्श्व लही केवल ज्ञान, इन्द्र रचो समोशरण महान
वन उपवन की शोभा अपार, प्रभु दिव्य वचन आनन्दकार
इन्द्र, नरेन्द्र, धरणेन्द्र नहि, देख तम जस प्रशंसा करहि
अद्भुत ज्योति है तुम्हारी, सबहि लोक फैला उजियारा
धर्मानुरंग रंग विशाला, लाल रंग, अंग बहु आला
रूप मात अधिक सुखदानी, दर्श करत मन अति हर्षानी
अकलंक-बोध बाद मंझारा, तारा कीनो मद अतिभारा
रूप सरस्वती का तुम धारा, कर सहाय अकलंक उभारा
सारा मद हुआ चकनाचूर, तुम यश अमित फैला जगपूर
जब कहीं धर्म विवाद पड़ा, बात मादियों का मान हारा
तुम्ही सार शक्तिलय लीना, लखु तुमको शत्रु भंग लीना
कर में कंज पुंज विराजे, उर में सुमन माला साजै
चरण बिन्द में घुंघरु बाजै, जुग भाग कान कुण्डल साजै
सिर पर मुकुट सुन्दर सोहना, लालतिलक भाल मनमोहना
परी भीड़ सन्तन पर जब-जब, भई सहाय मातु तुम तब-तब
प्रेम भहि से जो यश गावै, रिद्धि सिद्धि नेवा निधि पावै
धन धान्य वृधि सुख पावै, सुन्दर संतान सौ खिलावै
पद भ्रष्ट सुपद फिर पावहि, राज भ्रष्ट सुराज लहावै
उपसर्ग दुर्ग दुर्गावती रानी, सब संकट काटत सुख दानी
क्यों ऐ मात मुझे भुलाया, अपराध क्षमा कर अब माया
कारज मोरे सब सुधारो, काट दुःख सब विघन विचारों
कृपा करो हे अम्बा रानी, दीजै सम्यक्त शिव दानी
भय रोग सर्व पीड़ा हरणि, शत्रु नाश कारज सिद्ध करनी
ध्यावै तुम्हें जो नर मनलाई, सब सुख भोग परम पद पाई
सुमन भक्ति वश कीर्ति वस्त्रानी, जय जय जगदम्बा रानी