सुभौम चक्रवर्ती
क्रोध कषाय के कारण सुभौम चक्रवर्ती को नरक जाना पड़ा
वडे महाभाग्य और पुण्योदय से यह महापुरुषों के पद मिलते है ये महापुरुष 169 होते है यहाँ से ये सभी महापुरुष स्वर्ग या मोक्ष जाते है
हुंडावसर्पिडी काल के दोष से चक्रवर्ती को नरक जाना पडा
निमित्त वैसे ही वन जाते है जैसी होनहार होती है
चक्रवर्तियो का भोजन ऐसा होता है जो एक वार वन गया वह दुवारा कभी नही वनता है
एक वार सुभौम चक्रवर्ती भोजन पर वैठे थाल परोसा गया छोटी सी वात पर इतना अधिक क्रोधित हो गए कि उस क्रोध के कारण नरक जाना पडा क्रोध आदमी का सवसे वडा दुश्मन है उसे कुछ नही सूझता है अव चक्रवर्ती को ही देखो
चक्रवर्ती का वैभव इतना कि छ खंड के स्वामी होते है तीर्थंकरो को छोड कर इनके जितना वैभव किसी का नही होता है
एक समय मे एक ही चक्रवर्ती होता है दो नही हो सकते है ऐसा नियम है
इतने विशाल पुण्य के धनी होते है पूरा पुण्य भोग ले फिर भी कम नही होता है और इनके जाते ही इनका सारा वैभव खत्म हो जाता है
मरण पश्चात यहाँ से चक्रवर्ती सीधे स्वर्ग को जाते है
ऐसे महा पुण्यशाली सुभौम चक्रवर्ती का क्रोध पुण्य को खा गया और नरक जाना पडा
ऐसे क्रोध से वचे जिनके क्रोध कषाय वहुत होती है वात वात मे भिनकते है वह नरकगामी होते है
उनका धर्म जप तप दान सव व्यर्थ है
या कहे उनके जप तप धर्म सव नष्ट हो जाते हैं
कहानी पड़े हर चक्रवर्ती का खाना बहुत स्पेशल होता है
हर दिन नयी वैरायटी वनती है कभी कोई वैरायटी रिपीट नही होती है
चक्रवर्ती को भोजन परोस गया उस दिन भोजन मे खीर वनी थी परोसी गयी
खीर गर्म थी चक्रवर्ती ने जैसे ही खीर खायी मुंह जल गया और क्रोध में आ कर पुरा थाल गरमा गरम भोजन से भरा था रसोईया के उपर फैक दिया
गरम खाना होने से रसोईया जल गया जलते ही मर गया
मरते ही एक समय मे भवनित्रक देवो में जन्म लेकर व्यन्तर देव वन गया
पैदा होते ही उस रसोईऐ ने जो अव व्यंतर देव वन गया था वह अवधि ज्ञान से जान लेता है कि उसके उपर चक्रवर्ती ने गरमा गरम थाल फैका जिसके कारण जलने से मर गया
और वह अव चक्रवर्ती से वदला लेने की सोचता है
वह जानता है चक्रवर्ती जीभ्या का लोभी है इसे अच्छे अच्छे व्यंजन से ही वंश में किया जा सकता है
वह एक आम लेकर सुभौम चक्रवर्ती के पास जाता है और कहता है एक ही आम है वह भी सिर्फ आप के लिए लाया हूं स्पेशल आम है आपने कभी नही खाया होगा
चक्रवर्ती ने उसके वोलने पर वह आम खाया कहा ऐसा स्वादिष्ट आम कभी नहीं खाया और उसने कहा ऐसे आम और लाओ
व्यन्तर देव ने कहा वहुत दूर से लाया हूं आप हमारे साथ चलो वहीं मिलेगा
खाने का लोभी सुभौम चक्रवर्ती आम के लालच में उस व्यन्तर देव के साथ में चल दिया
और वह व्यंतर देव समुद्र के अंदर सुभौम चक्रवर्ती को ले गया वा गोल गोल चक्रवर्ती को घुमाता रहा
और कहता है अव तुम अकेले हो अव यहाँ आम मिलने वाला नहीं
अव तुम कैसे वचोगो
यह सोचो
मैं वहीं रसोईया हूं जो तुमने गरमा गरम भोजन से भरा थाल मेरे उपर फैका मुझे मार डाला मै मर कर व्यंतर देव वन गया
अव मै तुम्हे छोडने वाला नही देव वदले की आग मे जल रहा था व्यन्तर देव चक्रवर्ती को परेशान करता रहा
पर चक्रवर्ती को परास्त नहीं कर पाया और सोचने लगा इसके अंदर कोई असीम शक्ति है जिसके कारण इसको मार नहीं पाऊंगा
और अपने अवधि ज्ञान से जाना इसके पास कौन सी शक्ति है तव उसने जाना कोई दिव्य मंत्र है णमोकार मंत्र जिसके कारण मै उसे मार नही पा रहा
व्यन्तर देव ने चक्रवर्ती से कहा यदि तुम इस णमोकार मंत्र को इस पानी में लिखे दो पैर से मिटा दो तो मैं तुम्हें तुम्हारे स्थान पर छोड़ दूंगा
चक्रवर्ती परेशान हो गया था समुद्र में घुमाएं जा रहा था उसे लगा अव वचाने वाला कोई नहीं है
पानी में णमोकार मंत्र लिख दिया पैर रख दिया
णमोकार मंत्र पर पैर रखते ही पुण्य समाप्त हो गया और वह सुभौम चक्रवर्ती नरक पहुंच गया
सुभौम चक्रवर्ती को वचाने वाला कोई था तो वह णमोकार मंत्र था
उसके उपर कोई व्यन्तर वाधा नहीं पहुंचा पाया
इससे यह सीखना है कि किसी से पंगा मत लो पंगा लोगे
तो वैरियो की फौज तैयार हो जाऐगी और उन वैरी मे से कोई व्यन्तर वन गया तो तुम्हें जीने नही देगा वदला लेकर मार देगा जैसे इस व्यन्तर देव ने चक्रवर्ती को चाल चल कर मारा वो तो ठीक पर नरक भी भेज दिया अपने चंगुल मे फसा कर
इसीलिए हमेशा इग्नोर करो क्षमा करना सीखो साथ ही यह अच्छी तरह समझ लो धर्म ही हमारे जीवन में हमारा साथी होता है अन्य नही वाकि सव संयोग के रिस्ते है
लेकिन यह धर्म थोड़े मिथ्यात्व क्रोध मान लोभ इगो में चला जाता है और हम पाप वन्ध कर लेते हैं कषाय पाप व्यसन करते समय हम धर्म को भुल जाते हैं
इसीलिए आज तक भटक रहे है
धर्मम् शरणम् पव्वज्जामि हमेशा धर्म की शरण मे रहो
वरना चक्रवर्ती की तरह हमें भी नरक में जाना पड़ेगा फिर कोई वचाने वाला नही
अतः क्रोध को छोडकर क्षमा धारण करने का पुरूषार्थ करते रहना चाहिए।
जय जिनेन्द्र 🙏🏻🙏🏻