प्रभू की दुकान ...
प्रभू की दुकान ...
... प्रभू की दुकान ... !!*
*एक दिन मैं सड़क से जा रहा था। रास्ते में एक जगह बोर्ड लगा था - "ईश्वरीय किरयाने ⚖️ की दुकान" !*
*मेरी जिज्ञासा बढ़ गई - क्यों ना इस दुकान पर जाकर देखो, इसमें बिकता क्या है ? जैसे ही यह ख्याल आया, दरवाजा अपने आप खुल गया। मैंने खुद को दुकान के अंदर पाया।*
*जरा सी जिज्ञासा रखते ही द्वार अपने आप खुल जाते हैं; खोलने नहीं पड़ते। मैंने दुकान के अंदर देखा कि जगह-जगह देवदूत खड़े थे ! एक देवदूत ने मुझे टोकरी देते हुए कहा - मेरे बच्चे ध्यान से खरीदारी करो !*
*वहाँ - वह सब कुछ था, जो किसी इंसान को चाहिए होता है। देवदूत ने कहा - एक बार में टोकरी भरकर ना ले जा सको, तो दोबारा आ जाना ! फिर दोबारा से टोकरी भर लेना।*
*अब मैंने सारी चीजें देखी ! सबसे पहले धीरज खरीदा, फिर प्रेम भी ले लिया, फिर समझ भी ले ली। फिर एक दो डिब्बे विवेक भी ले लिया। आगे जाकर विश्वास के भी दो तीन डिब्बे उठा लिए। मेरी टोकरी भरती गई।*
*आगे गया तो पवित्रता मिली ! सोचा इसको कैसे छोड़ सकता हूं ! फिर शक्ति का बोर्ड आया शक्ति भी ले ली। हिम्मत भी ले ही ली; सोचा हिम्मत के बिना तो जीवन में काम ही नहीं चलता। फिर आगे सहनशीलता ली और मुक्ति का डिब्बा भी ले लिया।*
*मैंने वह सब चीजें खरीद ली, जो मेरे मालिक ईश्वर को पसंद है। फिर मुझ जिज्ञासु की नजर प्रार्थना पर पड़ी ! मैंने उसका भी एक डिब्बा उठा लिया - कि सब गुण होते हुए भी, अगर मुझसे कभी कोई भूल हो जाए, तो मैं प्रभु से प्रार्थना कर लूंगा कि भगवान मुझे माफ कर देना !*
*आनंद शांति के गीतों से मैंने 🛒 (basket) को भर लिया। फिर मैं काउंटर पर गया और देवदूत से पूछा - सर ! मुझे इन सब सामान का कितना बिल चुकाना है ?*
*देवदूत बोला - मेरे बच्चे ! यहां के "bill" को चुकाने का ढंग भी ईश्ववरीय है। अब तुम जहां भी जाना - इन चीजों को भरपूर बांटना और लुटाना। इन चीजों का बिल इसी तरह चुकाया जाता है।*
*कोई-कोई विरला ही इस दुकान पर प्रवेश कर पाता है। और जो प्रवेश कर लेता है, वह मालो-माल हो जाता है। वह इन गुणों को खूब भोगता भी है और लुटाता भी है।*
*प्रभू की यह दुकान सतगुरु के सत्संग की दुकान है। सतगुरु की शरण🧘🏻♂️में आकर, जब उसके वचनों से प्रीत करते हैं - तो सब गुणों के खजाने हमको मिल जाते हैं ! फिर कभी खाली हो भी जाए, तो फिर सत्संग में आ कर बास्केट को भर लेते हैं !*
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