सेठ सुदर्शन की कथा ( ब्रम्हचर्य व्रत पालन की कथा )
सेठ सुदर्शन की कथा ( ब्रम्हचर्य व्रत पालन की कथा )
ब) सेठ सुदर्शन की कथा ( ब्रम्हचर्य व्रत पालन की कथा )
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काफी समय पहले मगध देश के चम्पापुर नगर में वृषभदत्त नाम के सेठ रहते थे। उनके यहाँ एक ग्वाला गाय-भैंस पालने का कार्य करता था । उस ग्वाले को एक दिन जंगल में मुनिराज के दर्शन हुये और उन मुनिराज ने उसे पंच नमस्कार मन्त्र दिया । जिस पर उसकी गहन श्रद्धा हो गई । एक दिन किसी दुर्घटनावश उस ग्वाले की अकस्मात् मृत्यु हो गयी । वह पंच नमस्कार मंत्र के स्मरणपूर्वक मरण को प्राप्त हुआ और निदानबन्ध के फलस्वरूप अपने स्वामी सेठ वृषभदत्त का पुत्र हुआ । उसका नाम सुदर्शन रखा गया। वह जन्म से ही अतिशय रूपवान और बुद्धिमान था ।
4 युवावस्था में सुदर्शन का विवाह मनोरमा नामक कन्या से हुआ और • वे दोनों ही तीव्र धर्मरुचि से प्रतिदिन जिनेन्द्र भगवान के दर्शन-पूजन, स्वाध्याय, तत्त्वचिंतन पूर्वक श्रावक धर्म का पालन करते हुये जीवन व्यतीत कर रहे थे। कुछ समय बाद वैराग्य उत्पन्न होने पर सेठ वृषभदत्त ने अपना व्यापार पुत्र सुदर्शन को सौंपकर दिगम्बर मुनिराज के समीप जिनदीक्षा धारण • कर ली । सेठ सुदर्शन की ख्याति थोड़े ही समय में सम्पूर्ण राज्य में फैल गई।
एक दिन सेठ सुदर्शन मगध के राजा के साथ किसी उत्सव में सम्मिलित हुये । वहाँ महारानी अभया ने सेठ सुदर्शन को देखा और वह उनके रूप पर मोहित हो गई और किसी प्रकार से उन्हें पाने के उपाय पर 1 विचार करने लगी। उसने अपनी एक दासी को धन का लालच देकर वश में किया तथा उससे इस कार्य में सहयोग माँगा। दासी ने सेठ सुदर्शन को महल में लाने का उपाय बनाया ।
सेठ सुदर्शन की रूचि सांसारिक विषयों के विपरीत आत्मकल्याण के प्रति अधिक थी, उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत भी धारण कर लिया था। अत: वे आत्माराधना के लिये प्रति अष्टमी व चतुर्दशी को श्मशान में जाकर आत्मध्यान में रत रहते थे। यह बात महारानी की दासी को पता चली तो एक रात्रि, जिस समय सेठ सुदर्शन श्मशान में ध्यानस्थ थे, वह दासी श्मशान में जाकर सेठ सुदर्शन को उठा लाई तथा पहरेदारों को महारानी का भय दिखाकर तथा धन का लालच देकर अपने वश में करके सेठ सुदर्शन को महारानी के कक्ष तक पहुँचा दिया।
सेठ सुदर्शन को अपने कक्ष में पाकर रानी अत्यंत प्रसन्न हुई। उसने सेठ सुदर्शन के सामने अपनी विषयाभिलाषा प्रगट की परन्तु सेठ सुदर्शन इस घटना को अपने ऊपर उपसर्ग जानकर ध्यानस्थ हो गए फलत: वे मौन ही रहे। रानी ने अपने हाव-भाव आदि अनेक प्रकारों से सेठ सुदर्शन को विचलित करने का प्रयत्न किया परन्तु वह असफल ही रही। तब रानी ने सेठ सुदर्शन के साथ भयंकर कुचेष्टायें करना आरम्भ कर दिया परन्तु सेठ सुदर्शन प्रतिमावत् अचल ही रहे, उन्होंने कोई प्रत्युत्तर ही नहीं दिया। अपनी इच्छापूर्ति में असफल रहने पर रानी खीझ व क्रोध से भर उठी और उसने स्वयं को नोंचकर व अपने वस्त्र फाड़कर शोर मचा दिया। राजा समेत अन्य लोगों के आने पर वह रोने लगी और उसने सेठ सुदर्शन पर मिथ्या आरोप लगा दिया कि उसने मेरे साथ दुराचार करने का प्रयास किया। राजा ने सेठ सुदर्शन को गिरफ्तार करने का आदेश दिया और बिना विचार किये ही उन्हें मृत्युदण्ड देने की घोषणा कर दी।
अगले दिवस प्रातःकाल होने पर राजा के सैनिक सेठ सुदर्शन को
जैसे ही तलवार का प्रहार किया, वह तलवार फूलों की माला बनकर उनके गले में झूल गई तथा चारों ओर आकाश में उनकी व ब्रह्मचर्य धर्म की जयजयकार के शब्द गूंजने लगे। राजा को पता चलने पर उसने सेठ सुदर्शन से क्षमा माँगी। इस घटना के बाद सेठ सुदर्शन ने अपने पुत्र सुकान्त को व्यापार आदि कार्यभार सौंप दिया तथा वन में जाकर वहाँ विराजमान विमलवाहन मुनिराज के पास जैनेश्वरी दीक्षा अंगीकार कर ली। अपने ऊपर हुये उपसर्ग के समय ही वे यह प्रतिज्ञा कर चुके थे कि इस उपसर्ग के दूर होने पर मुनिदीक्षा धारण कर लेंगे। मुनि अवस्था को धारण कर सुदर्शन मुनिराज ने तपश्चर्या करके चारों घातिया कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त किया तथा कुछ समय पश्चात् अरहन्त दशा से भी बढ़कर वे सिद्ध पद को प्राप्त हुये। इस तरह ब्रह्मचर्य व्रत की दृढ़तापूर्वक उन्होंने अपने शील की रक्षा की एवं आत्मसाधना द्वारा मुक्ति पद प्राप्त किया।