पं. भूधरदास कृत दर्शन स्तुति

अहो! जगत गुरु देव, सुनियो अरज हमारी।

तुम हो दीन दयालु, मैं दुखिया संसारी।।

इस भव वन के माहिं, काल अनादि गमायो।

भ्रमत चतुर्गति माहिं, सुख नहिं दुख बहु पायो।।

कर्म महारिपु जोर, एक न काम करैं जी।

मन मान्या दुख देहि, काहूँ सों नाहिं डरैं जी।।

कबहूं इतर निगोद, कबहूं नरक दिखावें।

सुर-नर-पशुगति माहिं, बहुविधि नाच नचावें।।

प्रभु! इनको परसंग, भव भव माहिं बुरो जी।

जो दुख देखे देव! तुमसों नाहिं दुरो जी।।

एक जनम की बात, कहि न सकों सुनि स्वामी।

तुम अनन्त परजाय, जानत अन्तरयामी।।

मैं तो एक अनाथ, ये मिलि दुष्ट घनेरे।

कियो बहुत बेहाल, सुनियो साहिब मेरे।।

ज्ञान महानिधि लूटि रंक निबल करि डार्यौ।

इन ही तुम मुझ माहिं, हे जिन! अन्तर पार्यो।।

पाप पुण्य मिल दोइ, पायनि बेड़ी डारी।

तन कारागृह माहिं मोहि दिये दुख भारी।।

इनको नेक विगार, मैं कछु नाहिं कियो जी।

बिन कारन जगबन्धु! बहुविधि बैर लियो जी।।

अब आयो तुम पास सुनि कर, सुजस तिहारो।

नीति निपुण महाराज, कीजे न्याय हमारो।।

दुष्टन देहु निकार, साधुन को रख लीजै।

विनवै ‘भूधरदास’ हे प्रभु! ढील न कीजै।।

।। इति श्री ‘भूधरदास कवि कृत् दर्शनपाठः।।