प्रवचन - 1
आप के लिये जिनवाणी
प्रवचन - 1
प्रवचन - 1
करते हुए कहा कि जो ज्ञानी उपशम और तप भाव से सहित है बो संयमी है और जो ज्ञानी कषायों के बस हो जाता है वह असंयमी है। मोहनीय कर्म की 28 प्रकृतियों को दबाना उपशम सम्यक्त्व और चरित्र है और इनसे सहित जो तपस्या करता है वह संयमी कहलाता है। जो तप सम्यक्त्व के साथ तपा जाता है वह तप कर्मक्षय का कारण होता है। कषायों को जीतना उस पर विजय प्राप्त करना ही सबसे बड़ा संयम है क्योंकि उसके बाद संयम की साधना सरल और सहज हो जाती है।
गुरुमा ने बताया कषायों के संयोग से संयम का विनाश होता है और संयम परमात्मा बनने का साँचा होता है, मोक्ष का आधार है। इसलिए भाव सहित सकल संयम को धारण करो जो मुक्ति का बीज है। संयम के बिना कल्याण सम्भव नहीं है। संयमी प्राणी संयम से रहता है, संयम से बोलता है, संयम से सोता ,खाता, पीता ,उठता, बैठता ,चलता आदि हर क्रिया संयम पूर्वक करता है । जीवन में संयम से बड़ी कोई सम्पत्ति नही है। जहाँ पर संयम रूप भाव जागृत हो जाता है वहाँ पर व्यक्ति संसार शरीर और भोगो से उदास ही जाता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि कषायों के वश में होना असंयम है और कषायों को वश में करना ही संयम है।
आगे गुरुमा ने बताया कि ज्ञान मात्र कर्म क्षय का कारण नहीं है। वरना दर्शन और चारित्र का महत्व ही नहीं रहेगा ।दर्शन के बिना ज्ञान तो मिथ्याज्ञान हो जाएगा ।आचार्यो ने जीव का लक्षण ज्ञान दर्शन बताया है इसका मतलब सभी जीवों को ज्ञान है और यदि ज्ञान को कर्म क्षय का कारण मानोगे तो फिर सभी जीवों को मोक्ष हो जायेगा और संसार का अभाव हो जायेगा ।ज्ञान से मोक्ष मानने पर तो व्रत उपवास, एकासन, सामयिक, प्रतिक्रमण, तप, त्याग सब निरर्थक हो जायेंगे और मनुष्य आलसी प्रमादी होकर चारित्र हीन हो मनचाही प्रवृत्ति करेगा ।और फिर किसी भी गति से किसी भी पर्याय से मोक्ष मानना पड़ेगा सारी आगम की व्यवस्था बिगड़ जायेगी ।मनुष्य पर्याय का कोई महत्व ही नहीं रह जायेगा ।
गुरुमा ने बताया कि जो ज्ञान से ही मात्र कर्मो का क्षय मानते है उनकी मान्यता में दूषण है। क्योंकि फिर स्त्री तिर्यंच देव नारकी सभी को मोक्ष मानना पड़ेगा क्योंकि ज्ञान तो सभी को होता है। फिर तपस्या करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी, मोक्ष प्राप्त करना सरल हो जायेगा परन्तु यह संभव नहीं है। जैसे किसी को पता है कि पानी शीतल होता है, कुए से निकलता है, प्यास बुझाती है तो क्या उसकी प्यास बुझ जायेगी ? प्यास बुझाने के लिए तो पानी पीना ही पड़ेगा, उसी प्रकार ज्ञान मात्र से कर्म निर्जरा नहीं होती उसके अनुरूप आचरण होना चाहिए ।जैसे औषधियों के ज्ञान मात्र से रोग ठीक नहीं होता उस रोग के अनुरूप औषधी का सेवन करना पड़ेगा तभी रोग ठीक होगा।
गुरुमा ने बताया कि आचरण के बिना ज्ञान का कोई महत्व नहीं है। ज्ञान तो वह है जो आचरण के सांचे में ढ़लता है। आज मनुष्य के पास ज्ञान तो बहुत है परंतु आचरण के विषय में शून्य है। दुसरो को समझाने में बहुत ज्ञानी है परंतु अपने आपको समझाने के लिए अज्ञानी है। क्योंकि जानकर भी न करने योग्य कार्य करता है। जानता है कि पानी छानकर पीना चाहिए फिर भी अनछने जल का प्रयोग करता है अब आप सोचे की वह ज्ञानी है या अज्ञानी ।शब्दो के पण्डित इस संसार में बहुत मिल जायेंगे परन्तु आचरण के पूजारी बहुत कम है। इसलिए कहा गया है कि ज्ञान मात्र कर्म क्षय का कारण नहीं है उसके साथ आचरण होना और आचरण सहित ज्ञान कर्मक्षय का हेतु है।