आप के लिये जिनवाणी
ॐ में विराजित पंच परमेष्ठी की आरती
(तर्ज- भक्ति बेकरार है.....)
पावन श्री ॐ कार है, शास्वत अतिशयकार है।
परमेष्ठी वाचक की गाते, आरति मंगलकार है ॥टेक ॥
परमेष्ठी अरिहन्त हमारे, कर्म घातिया नाशी जी - 2
दिव्य देशना देने वाले, केवल ज्ञान प्रकाशी जी - 2 ॥
पावन श्री . . ॥1॥
नित्य निरंजन अविनाशी श्री, सिद्ध प्रभू कहलाए हैं-2
काल अनादी सिद्ध शिला पर, है सुखानन्त प्रगटाए हैं - 2 ॥ ॥
पावन श्री . . ॥2॥
पञ्चाचार का पालन करते, छत्तिस गुण के धारी जी - 2
शिक्षा दीक्षा देने वाले, पावन मंगलकारी जी - 2 ॥ ॥
पावन श्री . . ॥3॥ ,
उपाध्याय निर्ग्रन्थ मुनीश्वर, पढ़ते और पढ़ाते हैं-2
ग्यारह अंग पूर्व चौदह का, जो श्रुत ज्ञान जगाते हैं-2 ॥ ॥
पावन श्री .. ॥4॥
विषयाशा आरम्भ के त्यागी, रत्नत्रय गुणधारी जी - 2
ज्ञान ध्यान तप में रहते, 'विशद' कहे अनगारी जी - 2 ॥ ॥
पावन श्री . . ॥5॥