आप के लिये जिनवाणी
आरती चूलगिरि के श्री पाश्र्वप्रभु की
(तर्ज: जीवन है पानी की बूँद....)
चूलगिरि में पार्श्व प्रभु, महिमा दिखलाए रे।
आरति करने जिन चरणों में, हम सब आये रे ॥टेक ॥
स्वर्ग से चयकर जन्म लिए, काशी नगरी धन्य किए।
घर-घर में तब जले दिए, देव तभी जयकार किए।
अश्वसेन माँ बामा हो हो - 2, भाग्य जगाए रे ॥ चूलगिरि में.....||1 ||
वन में शैर को आप गये अचरज देखे नये-नये । ,
तपसी से प्रभु यही कहे, जीवों ने कई कष्ट सहे ।
नाग और नागिन हो - हो -2, क्यों आप जलाए रे ॥ चूलगिरि में.... ॥2 ॥
नागों को महामंत्र दिया, मन में प्रभु वैराग्य लिया ।
संयम धारण आप किया, केशलुंच निज हाथ किया ।
निज आतम का हो - हो - 2, प्रभु ध्यान लगाए रे ॥ चूलगिरि में .... ॥3 ॥
जीव कमठ का तब आया, देख प्रभुको गुस्साया ।
पत्थर पानी बरसाया, मन में भारी हर्षाया ॥
धरणेन्द्र - पद्मावति हो-हो- 2, उपसर्ग नसाए रे ॥ चूलगिरि में....||4 ||
प्रभु को केवल ज्ञान जगा, रहा कमठ तब ठगा- ठगा ।
प्रभु पद में वह माथ लगा, मिथ्या का फिर भूत भगा ॥
विशद कमठ हो - हो - 2, मन में पछताए रे ॥ चूलगिरि में.... ॥5॥