आप के लिये जिनवाणी
'ह्रीं' में विराजित चौबीस तीर्थंकर की आरती
(तर्ज- वन्दे जिनवरम् - वन्दे जिनवरम् ..... )
जगमग जगमग आरति कीजे, चौबीसों भगवान की ।
'ह्रीं' के अन्दर शोभा पाते, अतिशय आभावान की ॥ टेक ॥। ,
पद्मप्रभु अरु वासुपूज्य जी, लाल रंग के कहलाए ।
सीधी रेखा में द्वय जिनवर के हमने दर्शन पाए ।
आरति करते आज यहाँ पर, श्री जिन अतिशयवान की ॥ जगमग ..॥1॥
श्री सुपार्श्व अरु पार्श्वनाथ जी, ई (ी) में शोभा पाते हैं।
हरित वर्ण के द्वय तीर्थंकर, जग में पूजे जाते हैं ।
आरति करने आए हैं हम, वीतराग गुणवान की ॥ जगमग .. ॥2॥
अर्ध चन्द्र (ँँ) में चन्द्र प्रभु अरु, पुष्पदन्त जी बतलाए ।
धवल वर्ण है देह का जिनकी, अतिशय महिमा दिखलाए ॥
आरति करते हैं हम दोनों, अतिशय महिमावान की ॥ जगमग .. ॥३॥
मुनिसुव्रत अरु नेमिनाथ जी, श्याम बिन्दु (.) में गाए हैं।
मुक्ती पथ के राही जग को, प्रभु सन्मार्ग दिखाए हैं।
आरति करते आज यहाँ हम, अतिशय कृपा निधान की ॥ जगमग.. ॥4॥
'ह' के अन्दर सोलह जिनवर, पीतवर्ण के धारी हैं।
छियालिस मूलगुणों को पाते, पूर्ण रूप अविकारी हैं ॥
'विशद' आरती करते हैं हम, वीतराग विज्ञान की ॥ जगमग.. ॥5॥