आप के लिये जिनवाणी
नवदेवताओं की आरती
(तर्ज-इह विधि मंगल....)
नवदेवों की आरति कीजे, नर भव विशद सफल कर लीजे ।
प्रथम आरती अर्हत्थारी, कर्म घातिया नाशनकारी । नवकोटि....
द्वितीय आरती सिद्ध अनंता, कर्म नाश होवें भगवंता । नवकोटि....
तृतीय आरती आचार्यों की, रत्नत्रय के सद् कार्यों की । नवकोटि....
चौथी आरती उपाध्याय की, वीतरागरत स्वाध्याय की । नवकोटि....
पाँचवीं आरती मुनिसंघ की, बाह्याभ्यंतर रहित संग की । नवकोटि....
छठवीं आरती जैन धरम की, 'विशद' अहिंसा मई परम की । नवकोटि....
सातवीं आरती जैनागम की, नाशक महामोहं के तम की। नवकोटि....
आठवीं आरती चैत्य तिहारी, भवि जीवों की मंगलकारी । नवकोटि....
नौवीं आरती चैत्यालय की, दर्शन करते मिथ्याक्षय की । नवकोटि....
आरती करके वन्दन कीजे, शीश झुकाकर आशीष लीजे । नवकोटि....