आप के लिये जिनवाणी
श्री भरत चालीसा
दोहा-
नवदेवों को नमन है, नवकोटी के साथ।
चक्रवर्ति भरतेश जी, बने श्री के नाथ ।।
चालीसा जिनका विशद, गाते हैं शुभकार।
शिवपद के राही बनें, पाएँ मोक्ष का द्वार ।।
(चौपाई)
पुरुषाकार लोक ये जानो, मध्य में मध्य लोक पहिचानो ।। 1 ।।
जम्बू द्वीप रहा मनहारी, जिसके मध्य श्रेष्ठ शुभकारी ॥2॥
मध्य सुमेरु जिसके गाया, लख योजन ऊँचा बतलाया ।।३।।
भरत क्षेत्र दक्षिण में जानो, धनुषाकार श्रेष्ठ पहिचानो ।। 4 ।।
अवसर्पिणी ये काल बताया, अन्त तीसरे काल का आया ।। 5 ।।
है साकेत नगर जगनामी, जन्म लिए आदीश्वर स्वामी ।।6।।
धर्म प्रवर्तक जो कहलाए, शिक्षक षट् कर्मों के गाए ।।7।।
नन्दा जिनकी थी पटरानी, धर्म परायण सद् श्रद्धानी ॥8॥
जिनके पुत्र भरत कहलाए, अन्य भाई सौ जिनके गाए ॥9॥
चक्ररत्न को जिनने पाया, छह खण्डों पे राज्य चलाया ॥10॥
साठ हज्जार वर्ष तक भाई, दिग्विजयी यात्रा करवाई ॥11॥
आर्य खण्ड जिसमें शुभ जानो, पञ्च म्लेच्छ खण्ड भी मानो ।॥ 12 ॥
भरत क्षेत्र जिसमें शुभ गाया, भारत देश नाम शुभ पाया ।॥ 13 ॥
भरतेश्वर के नाम से भाई, देश का नाम पड़ा सुखदायी ।। 14 ।।
वृषभाचल पर नाम लिखाना, भरतेश्वर ने मन में ठाना ।। 15 ।।
किन्तू वहाँ जगह ना पाए, तब मन में वैराग्य जगाए ॥16॥
गृह में रहकर हुए जो त्यागी, पाके सब कुछ हुए ना रागी ॥17॥
त्रय सन्देश साथ में आए, केवलज्ञान पिता जी पाए ॥18॥
आयुध शाला में शुभ जानो, चक्ररत्न प्रगटा है मानो ।॥19॥
प्रथम पुत्र भरतेश्वर स्वामी, पाए हैं इस जग में नामी ।।20।।
पहले किस की खुशी मनाऐं, असमंजस था कहाँ पे जाएँ ।।21 ।।
पहले समवशरण में आए, केवलज्ञान की खुशी मनाए ।॥22॥
धर्मेश्वर ने धर्म निभाया, धर्मश्रेष्ठ है ऐसा गाया ।।23 ।।
ऋषभाचल पर अतिशयकारी, रत्न स्वर्णमय मंगलकारी।।24
मंदिर श्रेष्ठ बहत्तर गाए, भरतेश्वर जी जो बनावाए ।।25।।
रत्नमयी जिनमें प्रतिमाएँ, जन-जन के मन को जो भाएँ ।।26 ।।
भाव सहित जिनमें पधराए, भारी उत्सव वहाँ मनाए ।।27 ।।
जिनबिम्बों का न्हवन कराया, जिन पूजा कर पुण्य कमाया।।28 ।।
अतिशय कई विधान रचाए, वहाँ कि मिच्छित दान दिलाए ।।29 ।।
महलों में कई लोग बुलाए, यज्ञोपवीत उन्हें दिलवाए ॥30॥
ब्राह्मण वर्ण चलाने वाले, भरतेश्वर जी हुए निराले ॥31॥
लाख चौरासी पूरब भाई, भरतेश्वर ने आयू पाई ।।32 ।।
लाख सतत्तर पूरब जानो, कुमार काल जिनका पहिचानो ।।33 ।।
ऊँचे धनुष पाँच सौ गाये, छह लख पूरब राज्य चलाए।।34 ।।
मन में फिर वैराग्य जगाए, केश लुंचकर दीक्षा पाए॥35॥
अन्तर्मुहूत का ध्यान लगाए, अतिशय केवलज्ञान जगाए ।॥36॥
एक लाख वर्षों तक स्वामी, रहे केवली अन्तर्यामी ॥37 ।।
जग को सद संदेश सुनाए, जीवों को सन्मार्ग दिखाए ॥३४॥
अपने सारे कर्म नशाए, अष्टापद से मुक्ती पाए ।।39 ॥
हम भी यह सौभाग्य जगाएँ, 'विशद' मोक्ष पदवीं को पाएँ ।॥40॥
दोहा-
पढ़े भाव के साथ, चालीसा चालीस दिन।
बने श्री का नाथ, शिवपद का हानी बने ।।
रोग और दुःख दूर हों, सुख और शांति आनंदमय हो।
सद्गुण से भरपूर, होकर के शिवपद लहे ॥