आप के लिये जिनवाणी
रक्षाबंधन
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भगवान अरनाथ तीर्थंकर के शासनकाल में उज्जैन में राजा श्रीवर्मा राज्य करते थे। उनके चार मंत्री थे जिनके नाम बलि, नमुचि, प्रहलाद और बृहस्पति थे ।
एक बार अकंपनाचार्य अपने संघ के सात सौ दिगम्बर मुनिराजों के साथ उज्जैन नगर पहुँचे। राजा चारों मंत्रियों व प्रजाजनों के साथ उनके दर्शन के लिये पहुँचे । उस समय मुनिराज आत्मध्यान में मग्न थे अत: तत्त्वचर्चा उपदेश का कोई प्रसंग नहीं बना । उसी समय श्रुतसागर मुनिराज आहार लेकर वापिस आ रहे थे। चारों मंत्री जिनधर्म से चिढ़ते थे अत: मुनिराज से द्वेषभाव वश वे बहस करने लगे, तब मुनिराज ने अपनी प्रबल युक्तियों से उत्तर देकर उनका मान खंडित कर दिया। श्रुतसागर मुनिराज ने इस प्रसंग की चर्चा अकंपनाचार्य से की तो उन्होंने किसी अनिष्ट की आशंका से श्रुतसागर मुनिराज को वाद-विवाद के स्थान पर ही खड़े रहकर ध्यान करने को कहा। अपने अपमान से तिलमिलाए चारों मंत्री द्वेषवश रात्रि में वहाँ पर आये और उन्होंने मुनिराज को मारने के उद्देश्य से तलवार का प्रहार करना चाहा परन्तु उनके हाथ कीलित होकर रह गए । प्रात:काल इस घटना का पता चलने पर राजा ने चारों मंत्रियों को देश निकाला दे दिया।
वे चारों मंत्री हस्तिनागपुर के राजा पद्मराय के यहाँ जाकर कार्य करने लगे। किसी बात पर प्रसन्न होकर राजा पद्मराय ने उन्हें वरदान मांगने कहा तब चारों ने उसे यथासमय ले लेने की अनुमति ले ली ।
एक बार अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनिराजों का संघ विहार करता हुआ हस्तिनागपुर पहुँचा। यह देख बलि ने राजा पद्मराय के द्वारा दिए गए वरदान के रूप में सात दिन का राज्य मांगा। राज्य पाकर बलि उन सात सौ
मुनिराजों पर घोर उपसर्ग करने लगा। उसने मुनिराजों के चारों तरफ बाड़ी लगवाकर यज्ञ रचाया, जिसमें अग्नि में जानवरों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की सामग्री जलाई गयी, जिसके धुंये से मुनिराजों के शरीर जलने लगे तथा सांसे रुंधने लगीं, पर धन्य हैं वे अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनिराज, जो इस भीषण घोर उपसर्ग के बावजूद ध्याध्यानमग्नध्याध्यानमग्ननमग्ननमग्न रहकर आत्म-साधना में अचल रहे तथा उनके चित्त में बलि आदि किसी के प्रति भी क्रोध या रोष का परिणाम तक नहीं आया।
उसी समय राजा पद्मराय के भाई मुनि विष्णुकुमार जो पहिले मुनि हो गये थे, उन्हें इस उपसर्ग का पता चला तो उनके हृदय में मुनियों के प्रति वात्सल्य भाव जागृत हो उठा और उन्हें उन सात सौ मुनिराजों को उपसर्ग से * बचाने का परिणाम आया। उन्हें विक्रिया ऋद्धि सिद्ध हो गयी थी। वे मुनिपद में रहकर इस कार्य को नहीं कर सकते थे अत: उन्होंने मुनिपद त्यागकर एक बामनिया ब्राह्मण का वेश बनाया । वे ब्राह्मण वेश में बलि के पास आये । बलि ने उनसे इच्छानुसार वस्तु मांगने की प्रार्थना की। तब उन्होंने तीन पग भूमि मांगी और जब बलि ने तीन कदम भूमि देना स्वीकार कर लिया तो है उन्होंने अपने शरीर को विक्रिया ऋद्धि से बढ़ा लिया और समस्त भूमि को दो पगों में ही नाप लिया तथा तीसरा पग बलि के ऊपर रखने लगे, तब बलि ने उनसे क्षमायाचना की। इस तरह उन्होंने बलि को परास्त कर मुनियों की रक्षा की । वह दिन श्रावण की पूर्णिमा का था । अतः उस दिन से रक्षाबंधन पर्व चल पड़ा। उपसर्ग निवारण के बाद नगरजनों ने मुनिराजों की वैयावृत्ति की । • तथा उनके योग्य सिमैये की खीर आदि पदार्थों का आहार दिया तथा भविष्य में मुनिराजों की रक्षा का संकल्प लेकर स्मरणार्थ रक्षासूत्र बांधा। बलि ने भी क्षमायाचना करके जैनधर्म स्वीकार किया ।
मुनि विष्णुकुमार ने भी प्रायश्चित लेकर पुन: मुनिपद धारण किया और आत्म-साधना करके अंत में मुक्ति प्राप्त की।