आप के लिये जिनवाणी
तीर्थ वन्दना
आदि जिनेश्वर प्रथमहिं वन्दूँ, वर्द्धमानगुण गाऊँजी ।
सकल तीर्थकर गुण-गण मण्डित, पतित सुपावन ध्याऊँजी ॥
गुरु गौतम शारद मन लाऊँ, तीर्थ सकल गुण गाऊँजी ।
पंच परम गुरु नित्यहिं वन्दै, पंचहि पद मन ध्याऊँजी ॥
जम्बू द्वीप मनोहर सोहे, लख योजन परिमानोजी ।
मध्य सुदर्शन मेरु विराजे, विजयाचल है मानोजी ।।
मन्दिर विद्युन्माली सोहे, अस्सी चैत्यालय वन्दूँजी ।
कोस बत्तीस कैलाश विराजे, रिखबदेव निरवाणजी ।।
शिखर दश के मध्य विराजे, सम्मेदाचल पुनि वन्दूँजी ।
कर्मकाट निर्वाण पहुँचे, बीस जिनेश्वर वन्दूँजी ।।
चम्पापुरी वासुपूज्य जिनेश्वर, पावापुरी वर्द्धमानोजी ।
नेमिनाथ गिरनारहिं वन्दूँ, यादववंश कुलभानोजी ।।
कोडि बहत्तर मुनिवर वन्दूँ, सात सौ मुनि वन्दूँजी ।
मांगी तुंगी शिखर विराजे, मुनिवर कोड़ि निन्याणवजी ॥
गजपन्था सतरन्जा वन्दू कोटि शिला तारंगाजी ।
मुक्तागिरी वन्दजी पावागढ़ मुनि बन्दूजी ।।
आबुगढ़ चैत्यालहिं वन्दै अतिशय तीर्थ बखानौजी ।
अन्तरिक्ष मुनि पैठन वन्दूँ, रामटेक शांतिनाथजी ।।
रेवातीरी सिद्धानन्ता, सिद्ध क्षेत्र पुनि वन्दूँजी ।
रिखबदेव गोमट लख पुनि आमझेरा वन्दू जी ।।
श्री पार्श्व श्वर वन्दूँजी, चाँदनपुर महावीरजी ।
जामनेरा आदिश्वर वन्दु चिंतामणी उशैनीजी ।।
पद्म प्रभु चैत्यालयहिं वन्दु, कुण्डलपुर वर्धमानेजी ।
उदयगिरी चैत्यालहिं वन्दू, वन्द, सोमपुरी जिनराउजी ।।
अंकलेश्वर विल्होरा वन्दु, विघ्नहरण कचने राजी ।
जलदेव श्री गोमट वन्दूँ, सवा पाँच सौ धनुषजी ।।
नन्दीश्वर कुन्डलगिरि वन्दूँ, विजयागिरि पुनि वन्दूँजी ।
विपुलाचल कपिलेश्वर वन्दू, जन्म कल्याणक काशीजी ॥
कोशांबी नगरी अयोध्या वन्दूँ हस्तिनापुर पुनि वन्दूँजी ।
सोरीपुरी वटेश्वर वन्दू, द्वारावतीपुर वन्दू जी ।।
रिखबदेव बावनगज वन्दै राजगृही बड़वानीजी ।
सोलापुर आदिपद वन्दूँ कारंजा पुनि वन्दूँजी ।।
कल्याणीहि वन्द श्री व्यन्तर अष्ट प्रकारजी ।
भुवनवासी चैत्यालय वन्दूँ, ज्योतिष पंच प्रकार जी ।।
वर्तमान जिन चौबीसी वन्दूँ, वन्दूँ तीन चौबीसीजी ।
तीन लोक चैत्यालय बन्द वर्द्धमान जिनगे हे जी ।।
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण कृत्रिमा कृत्रिम चैत्यालय वन्दूँजी ।
आठ कौड़ि चैत्यालयर्हि वन्दूँ, लाख छप्पन पुनि वन्दूँजी ॥
सहस्त्र सत्तावन चैत्यालय वन्दै वन्दूँ अवर चार सौ एकासी ।
जो नर नारी नित विनती गावें, मनवांछित फल पावेजी ॥
मूल संघ के नायक सोहे, सकलकीर्ति गुरु वन्दूँजी ।
तत्पर्दा पाठोत्तर सोहे सुरेन्द्रकीर्ति मुनिरायजी ।।
नगरी भव्य राज्य री कर सोहे, सकल पंच मन भावेजी ।
संवत सत्रा से छप्पन सौहे, मास कार्तिक शुभ जाणौजी ॥
दास बिहारी विनती गावे, मन वांछित फल पाऊँजी ।
सकल तीर्थ की करूं वन्दना, मोक्ष सुकल्याणक पाऊँजी ॥