आप के लिये जिनवाणी
अट्ठचदुणाण दंसण, सामण्णं जीवलक्खणं भणियं।
ववहारा सुद्धणया, सुद्धं पुण दंसणं णाणं।।६।।
ये ज्ञान आठ दर्शन चारों, बारह प्रकार उपयोग कहे।
व्यवहार नयाश्रित होता है, सामान्य जीव का लक्षण ये।।
औ शुद्धनयाश्रित शुद्ध ज्ञान, दर्शन यह लक्षण कहलाता।
बस उभय नयों के आश्रय से, यह जीव द्रव्य जाना जाता।।६।।
अर्थ — आठ प्रकार का ज्ञान और चार प्रकार का दर्शन व्यवहार नय से यह सामान्य जीव का लक्षण कहा गया है, पुन: शुद्धनय से शुद्ध ज्ञान-दर्शन ही जीव का लक्षण है।
प्रश्न - शुद्ध निश्चयनय किसे कहते हैं?
उत्तर - वस्तु के शुद्धस्वरूप का कथन करने की प्रक्रिया को शुद्ध निश्चयनय कहते हैं।
प्रश्न - शुद्ध निश्चयनय से जीव किसे कहते हैं?
उत्तर - जिसमें शुद्ध दर्शन और ज्ञान पाया जाता है, शुद्ध निश्चयनय से वह जीव है।
प्रश्न - व्यवहारनय से (सामान्य) जीव का लक्षण क्या है?
उत्तर - व्यवहारनय से आठ प्रकार का ज्ञान और चार प्रकार का दर्शन जीव का लक्षण है।
प्रश्न - सामान्य किसको कहते हैं ?
उत्तर - जिसमें संसारी, मुक्त, एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय आदि जीवों की विवक्षा न हो, उसको सामान्य जीव कहते हैं।