:*दिव्य दुर्लभ जैन मंत्र*
*यह हमारे जैनो के बहुत ही दुर्लभ मंत्र है ।*
*मैं आपको इस दुर्लभ जैन मंत्र संग्रह को आप सभी लोग मोबाइल में सेव करे या एक डायरी में लिख लें ।
जेरॉक्स निकलवाकर भी रखें और सबको वितरित भी करें।*
*दिव्य दुर्लभ चामत्कारिक जैन मंत्रो के द्वारा समस्या से समाधान पाएं*
1.पारिवारिक शांति एवं सौहार्द :-
ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं।
2. क्रोध शमन मंत्र :-
1. ‘‘ॐ क्षौं क्षौं स्वाहा।‘‘
2. ॐ शांते-प्रशान्ते सर्व क्रोधोपशमनी स्वाहा।
3. ज्ञान वृद्धि मंत्र :-
‘‘ॐ णमो णाणस्स‘‘
4. भय-मुक्ति मंत्र :-
‘‘णमो अभयदयाणं‘‘
5. चिड़चिड़ापन मुक्ति मंत्र :-
‘‘ह्रूं।‘‘
6. शरारत कम करने के लिए :-
‘‘चंदेस्सु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा‘‘
7. पारिवारिक रिश्तों में मधुरता,सद्भावना के लिए :-
‘‘ॐ अरिहे सर्व रक्ष ह्रं फट् स्वाहा।‘‘
8. नकारात्मक विचार को कम करना :-
‘‘ॐ ह्रीं श्री भगवते पार्श्वनाथाय हर हर स्वाहा।‘‘
9. आस-पास की नेगेटिविटी कम करने के लिए :-
‘‘ॐ अर्हम् अ सि आ उ सा नमः‘‘
10. जीवन में मंगल करने के लिए :-
‘‘अरहंता मंगलं‘‘
11. सगाई का मंत्र :-
‘‘ॐ ह्रीं श्री नमो वासुपूज्य प्रभवे, ममग्रह शांन्तिं कुरु कुरु स्वाहा।‘‘
12. C.A., C.S., I C.W.A. , M.B.A. U.P.S.C. उच्च शिक्षा हेतू किसी भी Field में सफलता पाने के लिए :-
‘‘ॐ ह्रीं श्रीं चिंतामणि पार्श्वनाथाय अर्हते नमः‘‘
13. यात्रा प्रारम्भ पूर्व मंत्र :-
‘‘ॐ फुं क्ष्वीं ह्रीं ऐं नमः हः हः हः स्वाहा।‘‘
14. स्वयं को पावरफुल बनाने का मंत्र :-
‘‘ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह चन्द्र प्रभवे नमः।‘‘
15. डिसीजन मेकिंग :-
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं
16. खुश रहने का मंत्र :-
‘‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लीं ब्लूं श्लीं प्लीं स्वाहा।
17. पेट की समस्या :-
ॐ किले विकले स्वाहा।
18. पाचन तंत्र की समस्या :-
ॐ णमो भगवती गुणवती महामनसी स्वाहा।
19. ब्लड प्रेशर :-
‘‘ॐ‘‘
20. कोरोना मुक्ति मंत्र :-
ॐ ह्रीं णमों लोए सव्वसाहूणं।
गुरुदेव द्वारा दिया गया मंत्र कोरोना का :-
चइत्ता भारहं वासं चक्कवट्टी महिड्हिओ।
संती संतिकरे लोए, पत्तो गइमणुतरं।।
21. सरदर्द मुक्ति मंत्र :-
ॐ णमो परमोजिणाणं ह्रां ह्रीं
22. स्कीन प्राब्लम :-
क्षिप ॐ स्वाहा।
23. घूटने के दर्द के लिए :-
लं लं।
24. शुगर के लिए :-
‘‘ ॐ नमो भगवओ ऋषभाय हनि हनि स्वाहा।‘‘
25. थायराइड के लिए :-
अ: सिद्धा अ:
26. नाड़ीतन्त्र शक्ति वर्धक :-
ॐ हंसः
27. नींद नही आती :-
‘‘ह्रूं ह्रं।‘‘
28. धन की समस्या से मुक्ति :-
1. ॐ ह्रीं श्रीं का श्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा।
2. श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमल वासिन्यै स्वाहा।
3. ॐ श्री श्रियै नमः।
4. ॐ ह्रीं श्रीं महालक्ष्मी पार्श्वनाथाय नमः।
29. स्वयं का और पर इम्प्रेशन स्ट्रांग करने का मंत्र :-
‘‘ ॐ ह्रीं त्रैलोक्याधीश जिनाय नमः
30. राजनीति या सामाजिक पद प्राप्ति :-
ॐ ह्रीं वैं णमो आयरियाणं
31. धर्म बढ़ाने हेतु मंत्र :-
ॐ अर्हं अ सि आ उ सा णमों अरंहतांण नमः
32. सर्व शरीर रक्षा मंत्र :-
ॐ ह्रीं क्लीं ब्लीं स्वाहा।
33. वैर-शमन मंत्र :-
ॐ ह्रीं श्रीं (व्यक्ति का नाम) साधय साधव।
34. प्रेम भाव वर्धक मंत्र :-
ॐ ह्रीं अर्हं णमो पदानुसारिणं परस्पर विरोध विनाशनं भवतु।
35. परिवार में सम्मान :-
‘‘ ॐ ह्रीं श्रीं कुंथु अरं च मल्लिम, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च। वंदामि रिट्ठनेमि पासं तह वद्धमाणं च मम मनोवांछितम पूरय पूरय ह्रीं स्वाहा।
36. खोई हुई वस्तु की प्राप्ति :-
भक्तामर का 11 वां श्लोक - दृष्टवा भवन्तमनिमेष.....!
37. सूर्य ग्रह को प्रभावी बनाने का मंत्र :-
ॐ ह्रीं श्रीं नमः पद्मप्रभवें, मम ग्रह शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
38. चंन्द्र की स्थिति :-
ॐ ह्रीं श्रीं नमः नमश्प्रभवें, मम ग्रह शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
39. बुध की स्थिति :-
ॐ ह्रीं श्रीं नमो शांतिनाथाय, मम ग्रह शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
40. गुरु की स्थिति :-
ॐ ह्रीं श्रीं नमो ऋषभनाथाय, मम ग्रह शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
41. शुक्र की स्थिति :-
ॐ ह्रीं श्रीं नमो सुविधिनाथाय, मम ग्रह शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
42. शनि की स्थिति :-
ॐ ह्रीं श्रीं नमो मुनिसुव्रतनाथाय, मम ग्रह शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
43. राहू की स्थिति :-
ॐ ह्रीं श्रीं नमो नेमिनाथाय, मम ग्रह शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
44. केतू की स्थिति :-
ॐ ह्रीं श्रीं नमो पार्श्वनाथाय , मम ग्रह शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।
1. इष्ट सिद्धि में -
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हम ह्रूं श्री सीमंधर स्वामीने नमः स्वाहा।
2. विशिष्ट मंत्र की आराधना -
सिद्धा, ॐ ह्रीं नमः
3. अनुकूल स्थिति का निर्माण -
ह्रीं णमो उवज्झायाणं।
ह्रीं णमो लोएसव्वसाहूणं।
ह्रीं णमो आयरियाणं।
ह्रीं णमो सिद्धाणं।
ह्रीं णमो अरहंताणं।
4. आसक्ति को कम करने के मंत्र -
एगो मे सासओ अप्पा, णाणदंसण संजुओ
सेसा में बाहिरा भावा, सव्वे संजोग लक्खणा
5. नजर उतारना -
ॐ णमो भगवते श्रीपार्श्वनाथाय ह्रीं धरणेन्द्र पद्मावती सहिताय आत्मचक्षुप्रेतचक्षु पिशाचचक्षु सर्व ग्रहनाशाय त्रासय त्रासय ह्रीं श्रीं पार्श्वनाथाय स्वाहा
*मंत्र जाप का फलादेश तब होता है भगवान का अभिषेक पूजा अर्चना करे मंत्र जाप दीप जला कर और धूप खे कर करे मन वचन काय से एकाग्र मन से जपे क्रोध क्लेश न करे और वस्त्र अशुद्ध व फटे पुराने न हो धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहने बिना आसन नही जपे आसन डाब या चटाई हो बाजार की वस्तु न खाए घर का शुद्ध सात्विक भोजन करे और ऐकाशन करे ब्रमचर्य का पालन करे कंदमूल न खाए और बीड़ी सिगरेट तंबाकू जर्दा शराब अफ़ीम गांजा चरस आदि नशा मुक्त जीवन हो दूसरो के प्रति भावना खराब न हो इस तरह विधि वत मंत्रों का जाप करने से सिद्धि होती है और उसका फल मिलता है*
*शेर करना नही भूले* कृपया अधिक से अधिक ये मैसेज सबको भेजें जिससे सभी को इन दिव्य दुर्लभ मंत्रों से लाभ मिले
*आप अपनी समस्या के समाधान के लिए आप आकर हमारे से संपर्क कर सकते है*
🍁जैन आयुर्वेद भाग-२६
💐 आचार्य श्री उग्रादित्याचार्यकृतं
🍂वर्जनीय धान्य-
जो धान्य अत्यन्त विशीर्ण हो गया हो अर्थात् सड़ा हुआ या जिसमें झुर्रियाँ लगी हुई हों, बहुत पुराना हो, जला हुआ हो, कीट रोग लग जाने से खराब हो गया हो जो जंगल के खराब जमीन से उत्पन्न हो, अकाल में जिसकी उत्पत्ति हो गई हो, जो अच्छी तरह नहीं पका हो जो बिल्कुल ही नया हो, जो शरीर के लिए अहितकारक हो, प्रकृति के लिए अनुकूल न हो अर्थात् विरुद्ध हो, श्मशान भूमि में उत्पन्न हो, ऐसे धान्य खराब हैं। शरीर को अहित करने वाले हैं, अतएव निंद्य हैं। मुनीश्वरों की आज्ञा है कि ऐसे धान्य को सदा छोड़ना चाहिए।
💐शाक वर्णन प्रतिज्ञा-
🍁मूल शाक गुण-
इस प्रकार यथाविधि धान्य के गुण को कहा है। अब शाक पदार्थों के गुण का निरूपण करेंगे। शाकों के निरूपण में उनके मूल से (जड़) लेकर फल पर्यन्त वर्णन करेंगे। कमल की मूली, नाड़ी का शाक और भी अन्य आलु व तत्सदृशकंद, मधुगंगा हस्तिकंद (स्वनाम से प्रसिद्ध कोंकण देश में मिलने वाला कंद विशेष । उसका गिरिवासः नागाश्रयः कुष्ठहंता नागकंद आदि पर्याय है) शूकरकंद (बाराहीकंद) आदि मूल कहलाते हैं।
🍂शालूक आदि कंदशाकगुण-
कमलकंद, कशेरु नीलोत्पल आदि, जो कमल के भेद हैं उनके जड़, नाड़ी शाका कंद, विदारीकंद एवं दूसरे दिन पकने योग्य कंद, आदि कंदशाक पचन में भारी हैं। शीत स्वभावी है । कफोद्रेक करने वाले हैं। अच्छे व मीठे होते हैं। रक्तपित्त को जीतने वाले हैं। मल-मूत्र शरीर से बाहर निकालने में सहायक है और शुक्रकर हैं।
🍁मधुगंगा अनेक कोषों में देखने पर भी इसका उल्लेख नहीं मिलता। अतः इसके स्थान में मधुकंद ऐसा होवे तो ठीक मालूम होता है, ऐसा करने पर, आलु का भेद यह अर्थ होता है।
🥀अरण्यालु आदि कंदशाक गुण-
जंगली आलू, कमलकंद (कमोदनी) मुरटिका (कंद विशेष) भूशर्करा (सकर कंद तत्सदृश अन्य कंद) मानकंद, कुण्डली', नमलिका, जमीकंद (सूरण) लहसन, अम्लिका' श्वेताम्ली* मूसलीकंद, वाराहीकंद (गेंठी) कणिक', भूकर्णी हस्तिकर्णी आदि कंद स्वादिष्ट पुष्टिकर व विषको शमन करने वाले होते हैं। एवं वातज रोगों के लिए हितकर है।
🍂वंशाग्र आदि अंकुरशाकगुण-
वांस, शतावर, गुर्च, बेंत, हडजुड़ी, सूक्ष्म जटामांसी, काननासा ( कडुआटोंटी ) मारिषशाक (मरसा) आदि के कोंपल शीत है कफोत्पादक है। कामोद्दीपक है। पचन में भारी है पित्त के शमन करने वाले हैं। रक्त की गर्मी को दूर करने वाले हैं, मल को साफ करने वाले हैं। साथ में जरा बात को कोपन करने वाले हैं।
🥀जीवंती आदि शाकुगुण-
जीवंतीलता धीकुबार विधारा, वांदा, मंजिका, कुंदलता' चंचु (चेवुना ) कुंदुरुये मल को बांधने वाले और वातोत्पादक है। मरसा, दो प्रकार के पालक, वहा जीवन्ती इतने शाक कफ प्रकोप करने वाले है । चिल्ली' बथुआ, चौलाई ये पित्त में हितकर हैं।
✋शुभाशीर्वाद
🍁जैन आयुर्वेद भाग-२७
💐 आचार्य श्री उग्रादित्याचार्यकृतं
🥀शार्केष्टादि शाकगुण-
बड़ीकरंज परवल, जलकाचरी, मकोय मालकांगनी, ब्राह्मी, सातला, ( थूहर का भेद) द्रवणिका, गुडूचि, पुत्रिणी (वंदा व वादां) नीम, चिरायता चीनी अथवा केना वृक्ष, सफेद पुनर्नवा, आदि पित्त और कफ दूर करने वाले हैं, क्रिमीरोग को, उपशमन करने वाले हैं एवं चर्मगत रोगों को दूर करने वाले हैं।
🍂गुह्याक्षी आदि पत्र शाकगुण-
गुह्याक्षी, कुसुम्भ, शेगुणवृक्ष, सीताफल का वृक्ष, राई, अजमोद, सफेद सरसों इमली आम के पत्ते, श्यामतमाल, कुलाहल', गण्डारिनामकशाक', कंदूरी, सेंजन, जीरा, सोफ, सोया, धनिया, फणीवृक्ष, रालवृक्ष, कटेरी चिरचिरा आदि कफ को नाश करने वाले है उष्ण है एवं वातरोग में हितकारी है।
🍁बंधूक आदि पत्राशाकों के गुण-
दुपहरिया का वृक्ष, भृगु वृक्ष, वनहलदी, रीठा, दलिता, पीत देवदाली', मूंसाकर्णी, अरहर कचूर, कुसुम के वृक्ष, तरलीवृक्ष (एक प्रकार का कांटेदार वृक्ष) वंशिनी, मछीचना, इत्यादि के पत्तों में इन शाकों में उक्त गुण मौजूद है एवं पित्त को नाश करने वाले हैं, कफ को बढ़ाने वाले हैं, बल देने वाले हैं एवं रक्तज व्याधि पीड़ितों के लिए हितकर है।
🥀शिग्रुआदि पुष्प शाकों के गुण-
सैजन अमलतास, लिसोडा, सेमल, छौंकरा कमलकंदादि, तितिडीक बड़ी इलायची अथवा बाराही कंद, अगस्त्य वृक्ष, सन, वरना, नीम, इत्यादि के पुष्प वात कफ को उत्पन्न करने वाले है । पित्त, रक्त को शांतिदायक है अर्थात् शमन करने वाले हैं एवं पेट में जो कृमि उत्पन्न होते हैं, उनको गिरा देते हैं।
🍂पंचलवण गण का गुण-
शाल्मलीवृक्ष, मसूर, कचनार का पेड़, दाडिम का वृक्ष और कटाई का पेड़ ये पाँच लवणीवृक्ष कहलाते हैं। ये वृक्ष समुद्र के किनारे रहते हैं। ये वात को दूर करने वाले होते हैं कफ, पित्त और रक्त को उत्पन्न करते हैं। शरीर में शोषोत्पादक हैं व कठिनता से पचने योग्य हैं। पथरी रोग (मूत्रगतरोग) आदि को दूर करने वाले हैं। मूत्रगत दोषों को दमन करने के लिए विशेषतः हितकर हैं ।
🥀पंचबृहती गण का गुण-
कटेहरी, मजीठ अधोमानिनी' बड़ी कटेली सफेद आक ये पाँच बृहती कहलाते हैं, कफ से उत्पन्न बीमारियों के लिए हितकर है, कोढ़ को दूर करने वाले हैं, पेट की कृमियों का नाश करने वाले हैं। ज्वर में सदा हितकर है। बड़ी कटेली अथवा बेंगन कफ और कृमिरोग को उत्पन्न करने वाले हैं। स्वादिष्ट और कामोद्दीपक है।
🍁पंचवल्ली गुण-
कडुआ कुंदुरी का बेल, कडुआ तुम्बी का का बेल, मार्जारपादी (लता विशेष ) का बेल, (कडुआ) परवल का वेल, करेला का बेल, ये लतायें पंच वल्ली कहलाती है। कडु आलुका वेल पित्त को दूर करने वाले हैं। कफ को नाश करने वाले है। क्रिमिको नाश करने वाले हैं। कुष्ठरोग के लिए हितकर है। कास श्वास (दमा) विषज्वर को शमन करने वाले हैं। रक्त में भी हितकर हैं अर्थात् रक्त शुद्धि के कारण हैं ।
🍂गृधादिवृक्ष फलशाक गुण
काकादनी, आशुधान, पाडल नेत्र ( वृक्षविशेष) ककोडा, मुसली, वरना वृक्ष, पिण्डीतक, (मदन वृक्ष-तुलसी भेद) अमलतास इनके फल रूक्ष होते हैं, मधुर होते हैं। ठण्डे होते हैं पित्त और कफ को दूर करने वाले होते हैं। पचन में गुरु है शीघ्र ही वात को बढ़ाने वाले और विष को नाश करते हैं।
✋शुभाशीर्वाद