आपसी मतभेद से विनाश...
*एक बहेलिए ने एक ही तरह के पक्षियों के एक छोटे से झुंड़ को खूब मौज-मस्ती करते देखा* तो उन्हें फंसाने की सोची. उसने पास के घने पेड़ के नीचे अपना जाल बिछा दिया. बहेलिया अनुभवी था, उसका अनुमान ठीक निकला. पक्षी पेड़ पर आए और फिर दाना चुगने पेड़ के नीचे उतरे. *वे सब आपस में मित्र थे सो भोजन देख समूचा झुंड़ ही एक साथ उतरा. पक्षी ज्यादा तो नहीं थे पर जितने भी थे सब के सब बहेलिये के बिछाए जाल में फंस गए.*
जाल में फंसे पक्षी आपस में राय बात करने लगे कि अब क्या किया जाए. क्या बचने की अभी कोई राह है? *उधर बहेलिया खुश हो गया कि पहली बार में ही कामयाबी मिल गयी. बहेलिया जाल उठाने को चला ही था कि आपस में बातचीत कर सभी पक्षी एकमत हुए. पक्षियों का झुंड़ जाल ले कर उड़ चला.*
*बहेलिया हैरान खड़ा रह गया. उसके हाथ में शिकार तो आया नहीं, उलटा जाल भी निकल गया.* अचरज में पड़ा बहेलिया अपने जाल को देखता हुआ उन पक्षियों का पीछा करने लगा. आसमान में जाल समेत पक्षी उड़े जा रहे थे और हाथ में लाठी लिए बहेलिया उनके पीछे भागता चला जा रहा था. *रास्ते में एक ऋषि का आश्रम था. उन्होंने यह माजरा देखा तो उन्हें हंसी आ गयी. ऋषि ने आवाज देकर बहेलिये को पुकारा.* बहेलिया जाना तो न चाहता था पर ऋषि के बुलावे को कैसे टालता. उसने आसमान में अपना जाल लेकर भागते पक्षियों पर टकटकी लगाए रखी और ऋषि के पास पहुंचा.
ऋषि ने कहा- तुम्हारा दौड़ना व्यर्थ है. *पक्षी तो आसमान में हैं. वे उड़ते हुए जाने कहां पहुंचेंगे, कहां रूकेंगे. तुम्हारे हाथ न आयेंगे.* बुद्धि से काम लो, यह बेकार की भाग-दौड़ छोड़ दो.
बहेलिया बोला- ऋषिवर अभी इन सभी पक्षियों में एकता है. *क्या पता कब किस बात पर इनमें आपस में झगड़ा हो जाए. मैं उसी समय के इंतज़ार में इनके पीछे दौड़ रहा हूं.* लड़-झगड़ कर जब ये जमीन पर आ जाएंगे तो मैं इन्हें पकड़ लूंगा.
यह कहते हुए बहेलिया *ऋषि को प्रणाम कर फिर से आसमान में जाल समेत उड़ती चिड़ियों के पीछे दौड़ा.* एक ही दिशा में उड़ते उड़ते कुछ पक्षी थकने लगे थे. कुछ पक्षी अभी और दूर तक उड़ सकते थे.
*थके पक्षियों और मजबूत पक्षियों के बीच एक तरह की होड़ शुरू हो गई. कुछ देर पहले तक संकट में फंसे होने के कारण जो एकता थी वह संकट से आधा-अधूरा निकलते ही छिन्न-भिन्न होने लगी.* थके पक्षी जाल को कहीं नजदीक ही उतारना चाहते थे तो दूसरों की राय थी कि अभी उड़ते हुए और दूर जाना चाहिए. थके पक्षियों में आपस में भी इस बात पर बहस होने लगी कि किस स्थान पर सुस्ताने के लिए उतरना चाहिए. *जितने मुंह उतनी बात. सब अपनी पसंद के अनुसार आराम करने का सुरक्षित ठिकाना सुझा रहे थे. एक के बताए स्थान के लिए दूसरा राजी न होता.* देखते ही देखते उनमें इसी बात पर आपस में ही तू-तू, मैं-मैं हो गई. एकता भंग हो चुकी थी. कोई किधर को उड़ने लगा कोई किधर को. थके कमजोर पक्षियों ने तो चाल ही धीमी कर दी. *इन सबके चलते जाल अब और संभल न पाया. नीचे गिरने लगा. अब तो पक्षियों के पंख भी उसमें फंस गए. दौड़ता बहेलिया यह देखकर और उत्साह से भागने लगा. जल्द ही वे जमीन पर गिरे.*
*बहेलिया अपने जाल और उसमें फंसे पक्षियों के पास पहुंच गया. सभी पक्षियों को सावधानी से निकाला और फिर उन्हें बेचने बाजार को चल पड़ा.*
*तुलसीदासजी कहते है- जहां सुमति तहां संपत्ति नाना, जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना. यानी जहां एक जुटता है वहां कल्याण है. जहां फूट है वहां अंत निश्चित है. महाभारत के उद्योग पर्व की यह कथा बताती है कि आपसी मतभेद में किस तरह पूरे समाज का विनाश हो जाता है.
*चतुराई नहीं सज्जनता और सरलता अपनाएँ"...*
👉 *"आलस्य"* और *"प्रमाद"* वे दुर्गुण हैं, जो मानवी शक्ति का सबसे अधिक क्षरण-अपहरण करते हैं । *"अस्त-व्यस्त"* और *"अव्यवस्थित"* व्यक्ति अपना समय गंवाते रहते हैं, फलतः उनका सौभाग्य भी साथ ही गुम हो जाता है । सामने प्रस्तुत कर्म में *"उदासी-उपेक्षा बरतने वाले, कर्म को भार समझकर उसका बोझ ढोने वाले"* पग-पग पर थकते हैं । काम में मनोयोग लगाकर उस माध्यम से कौशल विकसित करना और पुरुषार्थ का आनंद लेना कितना अधिक मंगलमय है, *"इसका रहस्य कोई बिरले ही जानते हैं ।"* *"पुरुषार्थी,"* *"श्रमशील"* और *"मनस्वी"* *"कर्मपरायण"* व्यक्ति आत्मनिर्माण में संलग्न रहकर कुछ ही समय में इतने सुयोग्य एवं सक्षम बन जाते हैं कि अपनी उचित आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्ति सहज ही की जा सके ।
👉 *"नेक," "भला" और "चरित्रवान" मनुष्य बनकर रहना इतनी बड़ी उपलब्धि है कि उस प्रामाणिकता के आधार पर दूसरों का "स्नेह-सद्भाव" सहज ही आकर्षित किया जा सकता है ।"* *"सज्जनता"* और *"सरलता"*'की रीति-नीति, चरम चातुर्य की तुलना में कहीं अधिक लाभदायक सिद्ध होती है । उद्धत व्यक्ति आतंकवादी उद्दण्डता बरतने पर अहंकार की जितनी प्राप्ति करते हैं, *"उससे असंख्य गुना सम्मान विनयशील एवं सुसंस्कारी व्यक्ति प्राप्त करते हैं ।"*
👉 *"व्यवस्थित रीति-नीति अपनाकर निर्धारित लक्ष्य की ओर अनवरत निष्ठा के साथ चलते रहने वालों के अंततः सफल मनोरथ पूर्ण होकर ही रहते हैं ।"*