जिनवाणी स्तुति
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जिनवाणी जग मैया, जनम दुख मेट दो।
जनम दुख मेट दो, मरण दुख मेट दो॥
बहुत दिनों से भटक रहा हूं, ज्ञान बिना हे मैया ।
निर्मल ज्ञान प्रदान सु कर दो, तू ही सच्ची मैया ॥
गुणस्थानों का अनुभव हमको, हो जावे जगमैय्या ।
चढैं उन्हीं पर क्रम से फ़िर, हम होवें कर्म खिपैया ॥
मेट हमारा जन्म मरण दुख, इतनी विनती मैया ।
तुमको शीश त्रिलोकी नमावे, तू ही सच्ची मैया ॥
वस्तु एक अनेक रूप है, अनुभव सबका न्यारा ।
हर विवाद का हल हो सकता, स्यादवाद के द्वाराद्वाराद्वाराद्वारा
जिनवाणी स्तुति
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शास्त्र पठन में मेरे द्वारा,जो कुछ कहीं-कहीं ।
प्रमाद से कुछ अर्थ वाक्य पद मात्रा छूट गई।।१।।
सरस्वती मेरी उस त्रुटि को कृपया क्षमा करें ।
और मुझे कैवल्य धाम में मां अविलंब धरें ।।२।।
वांछित फलदात्री चिंतामणि सादृश्य मात्र तेरा ।
वन्दनवन्दन करने वाले मुझको मिले पता मेरा ।।३।।
बोधि समाधि विशुद्ध भावना आत्म सिद्धि मुझको ।
मिले और मैं पा जाऊं मां मोक्ष महा सुख को ।।४।।