सम्पूर्ण शारद - शशांक मरीचि जाल स्यन्दै,
रिवात्म यश सामि वसु प्रवाहैः।
क्षीरै र्जिनाःशुचि तरै रभिषिच्य मानाः,
सम्पाद यन्तु मम चित्त समी हितानि॥29॥
मंत्र - (१) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं झ्वीं इवीं क्ष्वी क्ष्वी द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय।ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते....…जिन मभिषेक यामि स्वाहा।
अर्घ-संसार महा दुख सागर में
प्रभु गोते खो आया हूँ।
अब क्षीर मलाई सम होने को
इस दुग्धा की धारा देता हूँ।।
उदक चन्दन तंदुल पुष्पकैश्चरु
सुदीप सुधूप फलार्घकैः।
धवल मंगल गान रवा कुले,
जिन गृहे जिन नाथ महं यजे।।
मंत्र- ॐही........... इतिदुग्धाभिषेकस्नपनम्।