जीव द्रव्य के नव अधिकार

जीवो उवओगमओ, अमुत्तिकत्ता सदेहपरिमाणो।

भोत्ता संसारत्थो, सिद्धो सो विस्ससोड्ढगई।।२।।

शंभुछंद- जो जीता है सो जीव कहा, उपयोगमयी वह होता है।

मूर्ती विरहित कर्ता स्वदेह, परिमाण कहा औ भोक्ता है।।

संसारी है औ सिद्ध कहा, स्वाभाविक ऊध्र्वगमनशाली।

इन नौ अधिकारों से वर्णित, है जीव द्रव्य गुणमणिमाली।।२।।

अर्थ - प्रत्येक प्राणी जीव है, उपयोगमयी है, अमूर्तिक है, कर्ता है, स्वदेह परिमाण रहने वाला है, भोक्ता है, संसारी है, सिद्ध है और स्वभाव से ऊध्र्वगमन करने वाला है। ये जीव के नव विशेष लक्षण हैं।

प्रश्न - जीव के नौ अधिकारों के नाम कौन-कौन से हैं?

उत्तर - १. जीवत्व २. उपयोगमयत्व ३. अमूर्तिकत्व ४. कर्तृत्व ५. स्वदेहपरिमाणत्व ६. भोक्तृत्व ७. संसारित्व ८. सिद्धत्व ९. ऊध्र्वगमनत्व।

प्रश्न - आत्मा का ऊध्र्वगमन स्वभाव क्यों कहा गया है ?

उत्तर - कोई ऐसा मानता है कि आत्मा जिस स्थान से मुक्त होता है-उसी स्थान पर रह जाता है। इसलिए उस सिद्धान्त का निराकरण करने के लिए जीव ऊध्र्वगमन करता है, ऐसा कहा गया है।

प्रश्न - अन्य ग्रंथों में जीव को उपयोगमय माना है और इस ग्रंथ में जीव के नौ अधिकार हैं, यह भेद क्यों किया है ?

उत्तर - यद्यपि उपयोगमय जीव का लक्षण ही वास्तविक है, तथापि शिष्यों को विशेषरूप से समझाने के लिए नौ अधिकार कहे हैं।