श्री शांतिनाथ पूजन विधान
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सिद्ध-शिला वासी हे भगवन्! तुमको आज बुलाऊँ मैं।
स्वारथ के सारे नाते हैं, हे सिरताज भुलाऊँ मैं |
भक्ति भाव के उर आसन पर श्रद्धा सहित बिठाऊँ मैं।
भक्त भावना पूरी करिये, सुर संगीत रिझाऊँ मैं |
नाना वाद्य बजाऊँ मैं... शांतिनाथ गुण गाऊँ मैं...
बार बार सिर नाऊँ मैं |
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्र ! सर्व कर्म बंधन विमुक्त सकल विघ्न शांतिकर संपूर्णोत्तम मंगलप्रद! हे पंचम चक्रेश्वर अत्र अवतर- अवतर संवौषट् ! (आह्वाननम् ) ।
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्र ! सर्व कर्म बंधन विमुक्त सकल विघ्न शांतिकर संपूर्णोत्तम मंगलप्रद! हे द्वादश कामदेवेंद्र अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठः ! ठः ! ( संस्थापनम् ) |
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्र ! सर्व कर्म बंधन विमुक्त सकल विघ्न शांतिकर संपूर्णोत्तम मंगलप्रद ! हे षोड़श तीर्थंकर अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् ( सन्निधिकरणम्
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वापी कूप सरोवर सिंधु का, जल कहाँ से पाऊँ मैं।
युगल नयन का नीर हे भगवन ! तव पद पद्म चढ़ाऊँ मैं |
शांतिनाथ शांति के दाता, सर्व अशांति दूर करो ।
विघ्न उपद्रव रोग नष्ट कर सुख शांति भरपूर करो ।।
ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौं ह्रः जगदापद्विनाशनाय ह्रीं शांतिनाथाय जन्म- जरा- मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 1 ॥
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काश्मीर केशर हे भगवन् ! बोलो कहाँ से लाऊँ मैं।
त्रय पद धारी प्रभु! भक्ति रंग, तुम पद कमल लगाऊँ मैं ||
शांतिनाथ शांति के दाता, सर्व अशांति दूर करो ।
विघ्न उपद्रव रोग नष्ट कर सुख शांति भरपूर करो ॥
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रू भ्रौं भ्रः जगदापद्विनाशनाय ह्रीं शांतिनाथाय संसार ताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 2 ॥
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धवल अखंडित सौरभ मंडित, तंदुल अंगुल सम लाया।
अक्षय पद पाने हे भगवन् ! तव पद मेरे मन भाया ॥
शांतिनाथ शांति के दाता, सर्व अशांति दूर करो।
विघ्न उपद्रव रोग नष्ट कर सुख शांति भरपूर करो ॥
ॐ प्रां प्री मूं प्रौं प्रः जगदापद्विनाशनाय ह्रीं शांतिनाथाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति ॥ 3 ॥
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मन संयम के सुमन सुगंधित, सुमन नाथ तव ढिंग लाया।
पुनर्जन्म का बीज नष्ट हो, मिले ना कामदेव काया ||
शांतिनाथ शांति के दाता, सर्व अशांति दूर करो ।
विघ्न उपद्रव रोग नष्ट कर सुख शांति भूरपूर करो ।।
ॐ रां रीं रूं रौं रः जगदापद्विनाशनाय ह्रीं शांतिनाथाय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 4 ॥
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ज्ञानामृत भोजन पाने को, नानाविध व्यंजन लाया।
क्षुधा पिशाची सद्य नष्ट हो, पड़े नहीं उसकी छाया ||
शांतिनाथ शांति के दाता, सर्व अशांति दूर करो ।
विघ्न उपद्रव रोग नष्ट कर, सुख शांति भरपूर करो ||
ॐ घ्रां घ्रीं घूं घौं घ्रः जगदापद्विनाशनाय ह्रीं शांतिनाथाय क्षुघा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वहा ॥ 5 ॥
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आत्म ज्ञान का दीप जलाने, ध्यान दीप मैं ले आया।
मोह तिमिर नश जाये मेरा, प्रभु चरणों माथा नाया |
शांतिनाथ शांति के दाता, सर्व अशांति दूर करो ।
विघ्न उपद्रव रोग नष्ट कर सुख शांति भरपूर करो ॥
ॐ झां झीं झुंझौं झः जगदापद्विनाशनाय ह्रीं शांतिनाथाय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 6 ॥
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दश विध धूप मनोज्ञ बना कर, तुम सन्मुख मैं खेता हूँ।
पाप नष्ट कर पुण्य बढ़ा कर, मुक्ति पद कर लेता हूँ।
शांतिनाथ शांति के दाता, सर्व अशांति दूर करो।
विघ्न उपद्रव रोग नष्ट कर सुख शांति भरपूर करो ।।
ॐ स्रां स्त्रीं स्त्रं स्रौं सः जगदापद्विनाशनाय ह्रीं शांतिनाथाय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 7 ॥
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पाप पुण्य फल भव भव पाये, पर मुक्ति फल मिला नहीं।
जिसको पाकर संतुष्टि हो, आतम अब तक खिला नहीं ।
अब मोक्ष परम फल पाने को, मैं लोकोत्तम फल लाया हूँ।
चतुर्गति के दुःख मिटें, शाश्वत सुख पाने आया हूँ।
शांतिनाथ शांति के दाता, सर्व अशांति दूर करो।
विघ्न उपद्रव रोग नष्ट कर, सुख शांति भरपूर करो ॥
ॐ खां खीं खूं खौं खः जगदापद्विनाशनाय ह्रीं शांतिनाथाय मोक्ष फल प्राप्ताये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 8 ॥
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समकित दर्शन ज्ञानादि गुण, पाने अर्घ्य समर्पित है।
राग द्वेष मद मोह त्याग कर, पावन तन मन अर्पित है।
शांतिनाथ शांति के दाता, सर्व अशांति दूर करो।
विघ्न उपद्रव रोग नष्ट कर सुख शांति भरपूर करो ।।
ॐ अ ह्रां सि ह्रीं आ हूं उ ह्रौं सा ह्रः जगदापद्विनाशनाय ह्रीं शांतिनाथाय अनर्घ्य पद प्राप्ताये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥
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शत इंद्रों से पूज्य शांति प्रभु, नमन आपको करता हूँ।
कल्पतरु के सुमन सुगन्धित, तुम चरणों में धरता हूँ।
॥इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥
अर्ध्यावली प्रारंभ
अशोक वृक्ष
॥ शोक रहित हे शांतिनाथ, यह तरु अशोक मन भाता है।
हं बीजाक्षर सहित पूजते, तन मन शांति पाता है |
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय अशोक तरु सत्प्रातिहार्य मंडिताय अशोक तरु युक्त शोभनपद प्रदाय हुम्ल्वर्यू बिजाय सर्वोपद्रव शांतिकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 1 ॥
सुर पुष्प वृष्टि,
कामदेव हे शांतिनाथ, सुर सुमन सुमन वर्षा करते।
भं बीजाक्षर पूजा करते, यश सुखमय जीवन भरते ॥
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय सुरपुष्पवृष्टि सत्प्रातिहार्य मंडिताय सुरपुष्पवृष्टि शोभनपद प्रदाय भम्ल्यूँ बीजाय सर्वोपद्रव शांतिकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 2 ॥
दिव्य ध्वनि
कोटि वाद्य ध्वनि से मनहर, दिव्य ध्वनि है जिनवर की ।
मं बीजाक्षर सहित पूजते, कृपादृष्टि हो प्रभुवर की ॥
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय दिव्य ध्वनि सत्प्रातिहार्य मंडिताय दिव्य ध्वनि शोभनपद प्रदाय मुम्ल्यूँ बीजाय सर्वोपद्रव शांतिकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 3 ॥
चामर
चौंसठ चँवर ढुराते सुरगण, भविजन ऊर्ध्व गमन करते ।
रं बीजाक्षर सहित पूजते, मुक्ति वधु मुनिजन वरते ॥
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय चामरोज्ज्वल सत्प्रातिहार्य मंडिताय चामरढोरण शोभनपद प्रदाय स्ल्यूँ बीजाय सर्वोपद्रव शांतिकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा || ॥
सिंहासन
सप्त भयों से रहित शांतिप्रभु, सिंहासन पर राज रहे।
घं बीजाक्षर सहित पूजते, भव्य मुक्ति पद साज रहे।।
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय सिंहासन सत्प्रातिहार्य मंडिताय सिंहासन प्रतिहार्य शोभनपद प्रदाय घुम्ल्यूँ बीजाय सर्वोपद्रव शांतिकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 5 ॥
भामण्डल
भामण्डल में सप्त भवों को, भव्य जीव प्रभो देख रहे ।
झं बीजाक्षर सहित पूजते, मोक्ष महल के लेख रहे ।।
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय भामण्डल सत्प्रातिहार्य मंडिताय भामण्डल शोभनपद प्रदाय झुम्ल्यूँ बीजाय सर्वोपद्रव शांतिकराय अयं निर्वपामीति स्वाहा ॥6॥
दुंदुभि
धीर मधुर गंभीर नाद से, दशों दिशायें गूंज रही।
सं बीजाक्षर सहित शांति प्रभु, भवि भ्रमरावलि पूज रही।
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय दुंदुभि सत्प्रातिहार्य मंडिताय दुंदुभिनाद शोभनपद प्रदाय सुम्ल्यूँ बीजाय सर्वोपद्रव शांतिकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 7 ॥
छत्रत्रय
तीन लोक के नाथ शांति पर, तीन छत्र अति शोभ रहे।
खं बीजाक्षर सहित पूजते, भविजन सुर गण मोह रहे ।
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथाय छत्रत्रय सत्प्रातिहार्य मंडिताय छत्रत्रय शोभनपद प्रदाय खुम्ल्यूँ बीजाय सर्वोपद्रव शांतिकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥8॥
अनंत ज्ञान
ज्ञानावरणी कर्म नाश प्रभु, ज्ञान अनंत को प्राप्त किया।
समोशरण में दिव्य ध्वनि से, जग जीवों को बोध दिया।
ॐ ह्रीं श्री ज्ञानावरण कर्म बंधनकृते सति तत्कर्मविपाकोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥
अनंत दर्शन
नवविध दृग वरणी को नाशा, दृग अनंत प्रभु पाया है।
'शांतिनाथ चरणों में, शत इन्द्रों ने शीश झुकाया है ||
ॐ ह्रीं श्री दर्शनावरण कर्म बंधनकृते सति 'तत्कर्मविपाकोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥10॥
अनंत सुख
मोहनीय को नाश आप ने, सुख अनंत को पाया।
सर्व हितंकर जिनवर तुमने, हित उपदेश सुनाया ||
ॐ ह्रीं श्री मोहनीय कर्म बंधनकृते सति तत्कर्मविपाकोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥11॥
अनंत शक्ति
अंतराय है पाँच प्रकारा, तुमने प्रभुवर जीता।
जिसने भी ली शरण तुम्हारी, जीवन सुख से बीता ॥
ॐ ह्रीं श्री अन्तराय कर्म बंधनकृते सतितत्कर्मविपाकोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 12 ॥
अव्याबाध
वेदनीय सुख दुख देता है, भगवन् तुमसे हारा।
नाम जपा जिसने भी तेरा, उसको भव से तारा ॥
ॐ ह्रीं श्री वेदनीय कर्म बंधनकृते सति तत्कर्मविपाकोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥13॥
अवगाहन
आयु कर्म जीव को रोके, चारों गति दुखदाई।
योग निरोध आयु को जीता, सिद्ध प्रभु सुखदाई ॥
ॐ ह्रीं श्री आयु कर्म बंधनकृते सति तत्कर्मविपाकोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥14॥
अगुरुलघु
गोत्र कर्म को जीत आपने, अगुरुलघु गुण पाया।
मैं भी गोत्र कर्म को जीतूं, शरण तुम्हारी आया ॥
ॐ ह्रीं श्री गोत्र कर्म बंधनकृते सति तत्कर्मविपाकोद्भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥15॥
सूक्ष्मत्व
नाम जीव से छल करता है, उसको आप छला है ।
जग में रह कर तुमको जपना, सबसे बड़ी कला है ||
ॐ ह्रीं श्री नाम कर्म बंधनकृते सति - तत्कर्मविपाकोद् भवोपद्रव निवारकाय श्री शांतिनाथाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥16॥
मन वच तन से पाप हुए जो, उनको मैं स्वीकार करूं ।
तव चरणों में पूर्ण अर्घ दे, सर्व दोष परिहार करूं ।
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
चतुर्णिकाय के देव आपके चरणों में नित आते।
भक्ति भाव से पुष्प चढ़ा कर, तेरी महिमा गाते ॥
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपेत् ॥
शांति मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह ध्यान-तीर्थस्योपरि विराजमान शांति जिनेन्द्राय नमः मम सर्वकार्य सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ।
जाप्य मंत्र की 9 बार, 27 बार या 108 बार जाप करें।
ॐ कल्याणक अर्घ्यं
शरण शान्ति
हे शांतिनाथ भगवान !, अब हम शरण तिहारी आये।
हम शरण तिहारी आये, तेरी पूजा करने आये ॥1॥
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
कंचन कलश
कंचन के कलश बनाये, क्षीरोदधि जल भर लाये।
इक सहस अठोतर ढारे, मस्तक पर धार कराये ॥ 2 ॥
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
भक्ति शीश
सुवरण के पात्र बनाये, जल फल वसु द्रव्य मिलाये।
चरणों में अर्ध चढ़ाये, भक्ति से शीश झुकाये ॥ 3 ॥
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्यं निर्व॑पामीति स्वाहा |
गर्भ बधाई
प्रभु शान्ति गर्भ में आये, देवों ने रत्न बरसाये ।
ऐरा माता हरसाई, नृप विश्वसेन को बधाई ॥ 4 ॥
ॐ ह्रीं भाद्रपद कृष्णा सप्तम्यां गर्भमंगलमण्डिताय श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
शान्ति मंगलकारी
जन्में प्रभु शान्तिनाथ, शत इन्द्र झुकाये माथ।
तिथि जेठ चतुर्दशी कारी, सब जीवन को हितकारी ॥ 5 ॥
ॐ ह्रीं ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दश्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
तप हित
वैराग्य भावना भाये, लोकान्तिक देव भी आये।
तप अनुमोदन प्रभु कीना, आतम हित में चित दीना ॥ 6 ॥
ॐ ह्रीं ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दश्यां तपो मंगल मण्डिताय श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
समवसरण
तप कर चउकर्म नशाये, प्रभु केवल ज्ञान लहाये ।
शुभ समवसरण रचवाये, प्रभु सद् उपदेश सुनाये ॥ 7 ॥
ॐ ह्रीं पौष शुक्ला दशम्यां केवल ज्ञान मण्डिताय श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
मोक्ष मोदक
प्रभु मोक्ष गमन जब कीना, हो गये प्रभु देह विहीना।
इन्द्रादिक देव भी आये, सुरनर ऋषि सब हरसाये ||
मोदक प्रभु चरण चढ़ाये ॥8॥
ॐ ह्रीं ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दश्यां मोक्ष मंगल मण्डिताय श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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जयमाला
शांति विधाता शांतिनाथ की अब जयमाला गाऊँ मैं।
शिव सुख दाता शांति प्रदाता, तव गुण महिमा गाऊँ मैं |
हे कामदेव! हे चक्रवर्ती!, हे तीर्थंकर! तेरी जय हो ।
जन्म जरा मृत्यु को जीता, हे प्रभुवर ! तेरी जय हो ।
पंचकल्याणक धारी जिनवर, शांतिनाथ तेरी जय हो ।
विश्वसेन - सुत ऐरानंदन, शांति प्रभु तेरी जय हो ।
चार कल्याणक हस्तिनापुर में, पंचम कूट कुंदप्रभ में।
शिखर सम्मेद से मोक्ष पधारे, शांतिनाथ प्रभु की जय हो ।
पुण्यात्मा भी तारे भगवन्, पापी जीव भी तारे हैं।
हमको क्यों नहीं तारो भगवन्, हम भी भक्त तिहारे हैं ।
ह्रीं बीज से युक्त जिनेश्वर, ही मध्य प्रभु राजे हैं।
भोग छोड़ कर योग धरा प्रभु, सिद्ध शिला पर साजे हैं |
हे शांतिनाथ! तव अनुकंपा से, अखिल विश्व में शांति हो ।
ज्ञान ध्यान तप करने वाले, संत जनों में क्रांति हो ।
अर्चन पूजन वंदन करके, शांतिनाथ गुण गाऊँ मैं।
ध्यानतीर्थ में ध्यान लगाकर, मुक्तिपुरी वस जाऊँ मैं |
दुःखों का क्षय कर्मों का क्षय, बोधि लाभ की प्राप्ति हो।
सुगति गमन हो मरण समाधि, जिन गुण संपत्ति प्राप्ति हो ।
ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतिनाथ की शरण में, पूजा रची विशाल ।
तन मन दोनों स्वस्थ हों, पूजक हों खुश हाल ॥
भूल चूक जो भी हुई, क्षमा करो जिनराज |
तव भक्ति के प्रसाद से मिले मोक्ष साम्राज ॥ "
॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपेत् ॥