इष्टै-मनो रथ शतै रिव भव्य पुंसां,
पूर्णै सुवर्ण कलशै निखिलै-र्वसानैः।
संसार सागर विलंघन हेतु सेतुः
माप्ला-वये त्रि-भुवनैक पति जिनेन्द्रम्॥35॥
मंत्र - (१) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं झ्वीं इवीं क्ष्वी क्ष्वी द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय। ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते....…जिन मभिषेक यामि स्वाहा।
अर्घ-संसार महा दुख सागर में
प्रभु गोते खाते आया हूँ।
अब घाति कर्म विनाशन को
चतु कलशों की धारा,देता हूँ।
उदक चन्दन तंदुल पुष्पकैश्चरु
सुदीप सुधूप फलार्घकैः।
धवल मंगल गान रवा कुले,
जिन गृहे जिन नाथ महं यजे।।
मंत्र- ॐही.......... इति चतुः कोण कुम्भ कलश स्नपनम्।