इसके पश्चात् दही, अक्षत, पुष्प व दीप से सुसज्जित आरती निम्न पद पढ़ते हुए करें वमंत्र पढ़ते हुए दीपक की ज्योत को मुख्य कर दही आदि श्री जी को अर्पित करें:-
दध्युज्जव लाक्षत मनोहर पुष्प दीपैः,
पात्रा र्पितं प्रति दिनं महता दरेण।
त्रैलोक्य मंगल सुखा लय काम दाह,
मारार्तिकं तव विभो रव तार यामि॥34॥
अर्घ- संसार महा दुख सागर में
प्रभु गोते खाते आया हूँ।
अब मिथ्या तम विनाशन को
इस दीप की आरती करता हूँ।।
उदक चन्दन तंदुल पुष्पकैश्चरु
सुदीप सुधूप फलार्घकैः।
धवल मंगल गान रवा कुले,
जिन गृहे जिन नाथ महं यजे।।