द्रव्यैर नल्प घन सार चतुःसमाढ्यै,
रामोद वासित समस्त दिगं तरालैः।
मिश्री कृतेन पयसा जिन पुंग वानां
त्रैलोक्य पावन महं स्नपनं करोमि।।36।।
मंत्र - (१) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं झ्वीं इवीं क्ष्वी क्ष्वी द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय।ॐ नमोऽर्हते भगवते श्री मते....…जिनमभिषेक यामि स्वाहा।
अर्घ-संसार महा दुख सागर में
प्रभु गोते खाते आया हूँ।
अब उत्तम तन को पाने को
इस गंध की धारा देता हूँ।
उदक चन्दन तंदुल पुष्प कैश्चरु
सुदीप सुधूप फलार्घकैः।
धवल मंगल गान रवा कुले,
जिन गृहे जिन नाथ महं यजे।।
ॐ ही....... इति पूर्ण सुगंधि जल स्नपनम्।