श्री जी पर निम्न पद व मंत्र पढ़ते हुए पुष्पों की वृष्टि करें:-
वसन्तिका जाति सुरेश वृन्दै,
वधूक वृन्दै रपि चम्प काघैः॥
पुष्पै रनेकै - रलिभि-र्हताग्रैः,
श्री मज्जिनेद्रांघ्रियुंग यजेऽहं।।33।।
मंत्र - (१) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह वं मं हं सं तं पं वं वं मं मं हं हं सं सं तं तं पं पं झं झं झ्वीं इवीं क्ष्वी क्ष्वी द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय।ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते....…जिन मभिषेक यामि स्वाहा।
अर्घ-संसार महा दुख सागर में
प्रभु गोते खाते आया हूँ।
अब काम बाण विनाशन को
इन पुष्पों की वृष्टि करता हूँ।
उदक चन्दन तंदुल पुष्प कैश्चरु
सुदीप सुधूप फलार्घकैः।
धवल मंगल गान रवा कुले,
जिन गृहे जिन नाथ महं यजे।।
मंत्र- ॐ ह्रीं सुमनः सुख प्रदाय पुष्प वृष्टिं करोमि स्वाहा।