तीर्थ वन्दना
दासबिहारीकृत - संवत् 1756 आदि जिनेश्वर प्रथमहिं वन्दूँ, वर्द्धमानगुण गाऊँजी ।
सकल तीर्थकर गुण-गण मण्डित, पतित सुपावन ध्याऊँजी ॥ गुरु गौतम शारद मन लाऊँ, तीर्थ सकल गुण गाऊँजी । पंच परम गुरु नित्यहिं वन्दै, पंचहि पद मन ध्याऊँजी ॥ जम्बू द्वीप मनोहर सोहे, लख योजन परिमानोजी । मध्य सुदर्शन मेरु विराजे, विजयाचल है मानोजी ।। मन्दिर विद्युन्माली सोहे, अस्सी चैत्यालय वन्दूँजी । कोस बत्तीस कैलाश विराजे, रिखबदेव निरवाणजी ।। शिखर दश के मध्य विराजे, सम्मेदाचल पुनि वन्दूँजी । कर्मकाट निर्वाण पहुँचे, बीस जिनेश्वर वन्दूँजी ।। चम्पापुरी वासुपूज्य जिनेश्वर, पावापुरी वर्द्धमानोजी । नेमिनाथ गिरनारहिं वन्दूँ, यादववंश कुलभानोजी ।। कोडि बहत्तर मुनिवर वन्दूँ, सात सौ मुनि वन्दूँजी । मांगी तुंगी शिखर विराजे, मुनिवर कोड़ि निन्याणवजी ॥ गजपन्था सतरन्जा वन्दू कोटि शिला तारंगाजी । मुक्तागिरी वन्दजी पावागढ़ मुनि बन्दूजी ।। आबुगढ़ चैत्यालहिं वन्दै अतिशय तीर्थ बखानौजी । अन्तरिक्ष मुनि पैठन वन्दूँ, रामटेक शांतिनाथजी ।। रेवातीरी सिद्धानन्ता, सिद्ध क्षेत्र पुनि वन्दूँजी । रिखबदेव गोमट लख पुनि आमझेरा वन्दू जी ।। श्री पार्श्व श्वर वन्दूँजी, चाँदनपुर महावीरजी । जामनेरा आदिश्वर वन्दु चिंतामणी उशैनीजी ।। पद्म प्रभु चैत्यालयहिं वन्दु, कुण्डलपुर वर्धमानेजी । उदयगिरी चैत्यालहिं वन्दू, वन्द, सोमपुरी जिनराउजी ।। अंकलेश्वर विल्होरा वन्दु, विघ्नहरण कचने राजी । जलदेव श्री गोमट वन्दूँ, सवा पाँच सौ धनुषजी ।। नन्दीश्वर कुन्डलगिरि वन्दूँ, विजयागिरि पुनि वन्दूँजी । विपुलाचल कपिलेश्वर वन्दू, जन्म कल्याणक काशीजी ॥ कोशांबी नगरी अयोध्या वन्दूँ हस्तिनापुर पुनि वन्दूँजी । सोरीपुरी वटेश्वर वन्दू, द्वारावतीपुर वन्दू जी ।। रिखबदेव बावनगज वन्दै राजगृही बड़वानीजी । सोलापुर आदिपद वन्दूँ कारंजा पुनि वन्दूँजी ।। कल्याणीहि वन्द श्री व्यन्तर अष्ट प्रकारजी । भुवनवासी चैत्यालय वन्दूँ, ज्योतिष पंच प्रकार जी ।। वर्तमान जिन चौबीसी वन्दूँ, वन्दूँ तीन चौबीसीजी । तीन लोक चैत्यालय बन्द वर्द्धमान जिनगे हे जी ।। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण कृत्रिमा कृत्रिम चैत्यालय वन्दूँजी । आठ कौड़ि चैत्यालयर्हि वन्दूँ, लाख छप्पन पुनि वन्दूँजी ॥ सहस्त्र सत्तावन चैत्यालय वन्दै वन्दूँ अवर चार सौ एकासी । जो नर नारी नित विनती गावें, मनवांछित फल पावेजी ॥ मूल संघ के नायक सोहे, सकलकीर्ति गुरु वन्दूँजी । तत्पर्दा पाठोत्तर सोहे सुरेन्द्रकीर्ति मुनिरायजी ।। नगरी भव्य राज्य री कर सोहे, सकल पंच मन भावेजी । संवत सत्रा से छप्पन सौहे, मास कार्तिक शुभ जाणौजी ॥ दास बिहारी विनती गावे, मन वांछित फल पाऊँजी । सकल तीर्थ की करूं वन्दना, मोक्ष सुकल्याणक पाऊँजी ॥
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दिगम्बर जैन तीर्थ निर्देशिका
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